गीता मर्म - 28

गीता में तत्त्व शब्द बार - बार आता है , तत्त्व क्या हैं ?

गीता के तत्त्व हैं -----
[क] भोग तत्त्व या गुण तत्त्व
[ख] अहंकार जो अपरा प्रकृति का एक तत्त्व है

गणित में जैसे integar and variables होते हैं , दर्शन में तत्त्व होते हैं । यहाँ एक उदाहण लेते हैं ----
भोग तत्त्व क्या हैं ?
भोग तत्त्व वे हैं जो भोग को बनाए रखनें में योगदान देते हैं ।
कर्म तत्त्व क्या हैं ?
कर्म को जो ज़िंदा रखते हैं , वे हैं कर्म तत्त्व ।
गीता के तत्त्व हैं -----
काम , कामना , क्रोध , लोभ
मोह , भय , आलस्य , निद्रा
अहंकार
इन्द्रियाँ, मन , बुद्धि , चेतना
आत्मा , जीवात्मा
ब्रह्म , परमात्मा
अपरा एवं परा प्रकृतियाँ
क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ
प्रकृति - पुरुष का योग
भोग , योग , संन्यास
बैराग्य , ज्ञान , परम गति , परम धाम
जो इन तत्वों को समझता है वह है ----
गीता तत्त्व - ग्यानी ॥
आगे चल कर हम एक - एक तत्त्व को गीता में खोजनें का प्रयत्न करेंगे , और उम्मीद है आप का साथ
मिलता रहेगा ॥

===== ॐ =====

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