गीता मर्म - 34


गीता से कुछ मणिओं को एकत्रित करें
और
बैठ कर मजा लें
क्यों भागना इधर से उधर ॥
गीता की पांच मणियाँ , आपके लिए जो ------
अस्थिर मन .....
संदेहयुक्त बुद्धि ....
खंडित स्मृति .....
मोह , और .........
अज्ञान का समीकरण देते हैं ॥
[क] सूत्र - 18.72 , 18.73
पहला श्लोक प्रभु का गीता में आखिरी श्लोक है जिसमें अर्जुन से पूंछ रहे हैं .....
अर्जुन ! क्या स्थिर मन से तूनें गीता सूना , क्या तेरा भ्रम दूर हुआ , क्या तेरा अज्ञान जनित मोह
समाप्त हुआ ? श्लोक - 18.73 गीता में अर्जुन का अंतिम श्लोक है जिसमें अर्जुन कहते हैं -----
प्रभु आप की कृपा से मेरा अज्ञान समाप्त हो गया है , मैं अपनी खोई स्मृत वापिस पा ली है , मेरा मोह भी समाप्त हो
गया है और अब मैं आप की शरण में हूँ ॥

[ख] सूत्र - 2.52
प्रभु कहते हैं ......
अर्जुन तूं युद्ध से भागनें की बात तो कर ना , क्योंकि ......
मोह के साथ बैराग्य नहीं मिलता ॥

[ग] सूत्र - 4.35, 10.3
प्रभु कहते हैं ......
ज्ञान से मोह का अंत होता है और परमात्मा के फैलाव रूप में यह संसार दिखनें लगता है और प्रभु मय वह
हो उठता है ॥

आप और हम जो कर्म करते हैं उनके पीछे -----
राजस और तामस गुणों का प्रभाव हो तो ऐसा कर्म प्रभु का ......
खुला हुआ द्वार ही है ॥
आप और गीता से क्या चाहते हैं , कहीं और ऐसे ध्यान सूत्र मिलना लगभग
असंभव सा है ॥
बहुत भटक लिए अब क्या भटकना,उठाइये गीता जो बाजार में लगभग 25 रुपयों में मिलता है और
उसे बना लीजिये अपना ध्यान गुरु ॥

=== ॐ =====

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