गीता मर्म - 30

गीता का धृतराष्ट्र

याद रखना हम गीता के धृतराष्ट्र को देख रहे हैं , किसी और धृतराष्ट्र को नहीं ॥

गीता का प्रारम्भ धृतराष्ट्र के श्लोक से है और यह श्लोक धृतराष्ट्र का पहला एवं आखिरी श्लोक भी है ।
गीता महाभारत - युद्ध का द्वार है लेकीन इसका इस युद्ध से निमित्त मात्र सम्बन्ध है । गीता को जो
महाभारत से जोड़ कर देखता है वह गीता के श्री कृष्ण से कभी नहीं मिल सकता ।
धृतराश्रा जी अपनें मित्र संजय से पूछते हैं - संजय वहाँ युद्ध स्थल में क्या चल रहा है , हमारे और
पांडू - पुत्रों के मध्य ?

धृतराष्ट्र जी बस इतना कह कर चुप रहते हैं , गीता का प्रारम्भ तो इस सूत्र से हो गयाऔर संजय के
श्लोक से गीता का अंत भी होता है जिसमें संजय कहते हैं .......
राजन ! यह समझना की जहां श्री कृष्ण और अर्जुन की जोडी है , विजय भी उसी पक्ष की होगी ।
धृतराष्ट्र जी अंधे ब्यक्ति हैं , संजयजी उनकी मदद के लिए उनके पास हैं , उनके मित्र भी हैं और अभी
युद्ध प्रारम्भ भी नही हुआ पर संजय जी युद्ध का परिणाम घोषित कर रहे हैं । अब आप सोचिये की धृतराष्ट्र
इस बात को सुन कर कैसे चुप रहे होंगे ?
गीता में चार पात्र हैं ; प्रभु श्री कृष्ण , अर्जुन , संजय और धृतराष्ट्र । चार लोगों में एक मात्र
धृतराष्ट्र ऐसे ब्यक्ति हैं जो चुप रहते हुए संजय जो भी कह रहे हैं उसको सुनते रहते हैं ।
गीता को शांत मन - बुद्धि से सुन कर , धृतराष्ट्र जी पूर्ण श्रोता जैसे दीखते हैं और यदि ऐसा है तो
उनको परम गति मिलनी ही चाहिए ।
धृत राष्ट्र , राजा हैं और संजय की बातों को प्रश्नरहित स्थिति में सुनते रहते हैं यह एक
योगी की पहचान है ॥

==== ॐ ======

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