एक यात्रा - भाग - 02

मन कही रुकनें नहीं देता

एक अनजानें मित्र से हैं , नाम है - ओशो रजनीश , पूछते हैं ..... द्रोपती या सीता किस तरह की स्त्रियों की
आज जरुरत है ?
मेरे प्यारे मित्र !
आप का नाम तो सुना हुआ लगता है लेकीन यह नाम उधार का है । मैं श्री चन्द्र मोहन रजनीश को कुछ - कुछ
समझता हूँ और ओशो को लगभग पांचवी - छठवी सताब्दी से जानता हूँ क्यों की बोधी धर्मं को उनका एक
शिष्य ओशो नाम से पुकारता था । बोधी धर्मं पल्लव राजाओं के राज कुमार थे और जब भारत में बुद्ध के
समर्थकों का जीना मुश्किल हो गया तब सच्चे बुद्ध प्रेमी पलायन करनें लगे , बोधी धर्म उनमें से एक थे जो
महा काश्यप के बाद दूसरे योगी थे जो चीन - जापान में जा कर बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार - प्रशार किया ।
बोधी धर्म झेंन पंथ के आदि गुरु मानें जा सकते हैं ।

सीता त्रेता युग की महिला थी और द्रोपती द्वापर युग की ; दोनों में एक युग की दूरी है अतः दोनों को एक तराजू पर मापना उचित नही दिखता , वैसे आप ओशो रजनीश हैं , आप को स्त्रियों की अच्छी परख होनी चाहिए ,मैं तो
महा मुर्ख हूँ , इस बिषय में ।

त्रेता - युग और द्वापर की कहानियां तो बहुत मिलती हैं लेकीन सत - युग की कहानियां कुछ कम सी दिखती हैं ,
क्या कारण हो सकता है ?
मैं एक दिन स्वप्न देख रहा था , स्वपन था सत - युग का । स्वप्न में मैं सत - युग के लोगों को देखा , सभी लोग
बड़े भोले इन्शान थे , जिनकी जरूरतें न के बराबर थी , जो अद्वैत्य में जीते थे , जो संदेह रहित थे और उनकी
झोपड़ियों के साथ प्रभु की भी एक झोपड़ी थी । वहाँ के लोग प्रभु को तो नहीं पहचानते थे क्यों की वे लोग स्वयं
प्रभु तुल्य थे लेकीन मैं एक महान भोगी , स्वार्थी ब्यक्ति तुरंत समझ गया की हो न हो यह ब्यक्ति प्रभु हो , चलो इसको
अपनाते हैं , यदि कोई फ़ायदा न भी हुआ तो नुकशान की कोई गुंजाइश भी नहीं दिखती ।

सत - युग में प्रभु सब के साथ रहते थे लेकीन जैसे - जैसे मनुष्य में परिवर्तन आनें लगा , मन - बुद्धि में
विकार भरनें लगा , प्रभु साकार से निराकार में प्रवेश कर गए ।
आज भी गुनातीत योगी के लिए प्रभु निराकार नही है ॥

====== ॐ ======

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