गीता अमृत - 90

समझिये -----

## अपनी औलाद को उठाते - उठाते मनुष्य स्वयं झुक जाता है
## जिस बच्चे को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया , उसकी उंगली पकड़ कर चल रहे हैं
## सभी अपनें बच्चे को अपने इशारे पर चलानें का प्रयाश करते हैं लेकीन अंत में उसके इशारे पर चलना पड़ता है
$$ माँ का बंधन जब कुछ ढीला होनें लगता है , पत्नी की डोरे में उलझना होता है
$$ जब अपनें बेगाना समझनें लगें तब प्रभु को पकड़ना चाहिए
$$ जब सभी सहारे मिथ्या से दिखनें लगें , प्रभु को सहारा बनाना चाहिए
** जीवन को छोटी - छोटी बातों से प्रभावित न होनें दो
** जीवन प्रभु का प्रसाद है , इसे ब्यर्थ में न जानें दो
** आप जिसको चाहते हैं , वह आप को भी चाहे , यह जरुरी नहीं लेकीन चाह

एक मजबूत बंधन है
++कौन है किसका की सोच आगे नहीं चलनें देती , और
कौन है सब का - की सोच पीछे नही जानें देती

===== ॐ ======

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