गीता अमृत - 87


जीवन ज्योति

[क] कहीं अपनें को छिपाते - छिपाते जीवन न सरक जाए .....
[ख] मंदिर को घर न बनाओ , कोशिश करो - घर को मंदिर बनाने में .....
[ग] मूर्ति के साथ बैठते - बैठते ध्यान में मूर्तिवत होना - अपरा भक्ति से परा में पहुँचना है .....
[घ] उस घडी का इंतज़ार करो , जब न तन हो न मन हो , यह स्थिति है , प्रभुमय होने की .....
[च] दुसरे की गलती पर स्वयं को सताना , मन की गुलामी है ......
[छ] अपनीं गलती हो और हम किसी और को सताएं , यह पाप है .....
[ज] जबतक मैं और तूं में हम हैं , प्रभु हमसे दूर है .......
[झ] अकेलापन या तो प्रभु से मिला देता है या पागल बना देता है .....
[क-१] अहंकार दुःख की जड़ है .....
[क-२] मोह और भय साथ - साथ चलते हैं .....

दस सूत्र आप को यहाँ मिल रहे हैं , आप इन सूत्रों को एक - एक करके अपनाएं
और अपनें जीवन में
इनकी छाया को देखते रहें ,
धीरे - धीरे आप द्रष्टा बन जायेंगे ॥

===== ॐ ======

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