महर्षि पतंजलि के शब्दों में प्राणायाम का अगला चरण प्रस्तुत है । रेचक , पूरक और कुम्भक के सम्बन्ध में पतंजलि के दो सूत्रों के माध्यम से आप देख सकते हैं कि प्राणायाम में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए 👇
आप को इस प्रश्न के लिए गीता के 27 श्लोकों का सारांश देखना है जिसको यहाँ दिया जा रहा है । गीता को भय के साथ न उठायें , यह तो आप का मित्र है । मित्र वह होता है जो बाहर - अंदर दोनों चहरे को देखनें में सक्षम होता है । गीता-श्लोक 7.3 कहता है ------- सदियों के बाद कोई एक सिद्ध - योगी हो पाता है और हजारों सिद्ध - योगियों में कोई एक परमात्मा तुल्य योगी होता है । श्री कृष्ण यह बात अर्जुन के प्रश्न - 7 के सन्दर्भ में कह रहे हैं और प्रश्न कुछ इस प्रकार है ........ अनियमित लेकिन श्रद्धावान योगी का योग जब खंडित हो जाता है तथा उसका अंत हो जाता है तब उसकी गति कैसी होती है ? परम से परिपूर्ण बुद्ध को खोजना नहीं पड़ता , उनको खोजनें लायक होना पड़ता है । हम-आप बुद्ध को क्या खोजेंगे ? , वे संसार में भ्रमण करते ही इस लिए हैं की कोई ऐसा मिले जो उनके ज्ञान - प्रकाश को लोगों तक पहुंचा सके । दक्षिण के पल्लव राजाओं के घरानें का राजकुमार पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व कोच्ची से चीन मात्र इसलिए पहुँचा की वह बुद्ध - ज्ञान की ज्योति को उस ब्यक्ति को दे सके जो इस काम के लिए जन्मा है । इस महान योगी को लोग बोधी धर्म का नाम द...
पतंजलि योग दर्शन में समाधि क्या है ? भाग : 01 ( संप्रज्ञात समाधि ) महर्षि पतंजलि अपनें योग दर्शन में निम्न प्रकार की समाधियों की चर्चा करते हैं ⬇️ # संप्रज्ञात समाधि #असंप्रज्ञात समाधि # धर्ममेघ समाधि संप्रज्ञात समाधि के संदर्भ में सवितर्क - निर्वितर्क एवं सविचार - निर्विचार समापत्तियों की भी चर्चा करते हैं । अब हम ऊपर व्यक्त 03 प्रकार की समाधियों और 04 प्रकार की समापत्तियोंं को समझते हैं । संप्रज्ञात समाधि क्या है ? पतंजलि योग दर्शन के साधन पाद में अष्टांगयोग साधना की चर्चा की गई है । यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि अष्टांगयोग के 08 अंग हैं । यहां समाधि शब्द संप्रज्ञात समाधि के लिए प्रयोग किया गया है जो आलंबन आधारित होती है और जिसे सबीज या साकार समाधि भी कहते हैं । संप्रज्ञात समाधि को समझने से पूर्व धारणा और ध्यान को समझना चाहिए । धारणा अष्टांगयोग का 6 वां अंग है धारणा । चित्तको किसी देश ( सात्त्विक आलंबन ) से बांध देना धारणा है (पतंजलि साधनपाद सूत्र - 1 ) " तत्र , प्रत्यय , एकतानता , ध्यानम् " ध्यान में चित्...
आप अपनें पौराणिक कथाओं पर एक नज़र डालें ----- हमारे ऋषियों को कुछ इस ढंग से प्रस्तुत किया गया है जैसे नशे में हों , जी लोगों का काम है ---- बात - बात पर श्राप देना ... जैसे जा तूं अगले जन्म में अजगर बनेगा ...... जा तूं अगले जन्म में छिपकली बनेगा , आदि - आदि ॥ हमारे ऋषि लोग जो अपनी सुरक्षा तो कर नही पाते , उनको बचानें के लिए अवतार होते हैं ---- संभवामि युगे - युगे [ गीता - 4।8 ] इस से साफ़ - साफ़ जाहिर होता है की अहंकार का असर तब तक रहता है जब तक तन में प्राण है । गीता में प्रभु कहते हैं ....... तीन गुणों की मेरी माया है , जिसमें दो प्रकृतियाँ ; अपरा और परा हैं । अपरा प्रकृति के आठ तत्वों में से एक तत्त्व है - अहंकार । अहंकार दो प्रकार के होते हैं - धनात्मक और रिनात्मक । धनात्मक अहंकार राजस गुण के तत्वों के साथ होता है और रिनात्मा अहंकार तानस गुणों के तत्वों के साथ यात्रा करता है । अहंकार एक ऐसा तत्त्व है जो बैराग्यावस्था में पहुंचनें तक पीछा नहीं छोड़ता और योगी, बैराग्य से गिर कर नीचे की योनियों में जन्म ग्रहण करता है । बुद्ध कहते हैं ---- हम दूसरों की गलती पर स्वयं को सजा देते हैं क्यो...
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