दुःख संयोग वियोगः योगः

●●दुःख संयोग वियोगः योगः●●
गीतामें प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं ---
" दुःख सयोग वियोगः इति योगः "
ये श्री कृष्ण वही हैं जो 11 सालकी उम्र तक मथुरासे नन्द गाँव ,नन्द गाँवसे वृन्दावन और नन्द गाँव से बरसाना तक बासुरिकी धुन और रासको योग का माध्यम बनाया था और महाभारतके समय जब उनकी उम्र 80 साल से ऊपर की रही होगी तब कहते हैं -----
" सिद्धानां कपिलः मुनिः अहम् अस्मि "
गीता 10.26 कपिल मुनि सत युगके प्रारंभमें स्वयाम्भुव मनुकी पुत्री देवहूति और कर्मद ऋषिके पुत्र रूप में श्री विष्णु भगवानके पांचवें अवतार के रूप में जन्म लिया था । कर्मद ऋषि विन्दुसरमें 10,000 साल की तपस्या किया था । विन्दुसर अहमदाबाद -उदयपुर मार्ग पर अहमदाबादसे 130 किलो मीटर दूर है जो कभीं तीन तरफसे सरस्वती नदीसे घिरा हुआ क्षेत्र होता था और जिसे सरस्वती जल देती
थी ।प्रभु श्री कृष्ण 125 वर्ष की उम्र में यदु कुल का अंत करके अपनें परम धाम की यात्रा की थी । कपिल मुनि अपनी माँ की कैवल्य प्राप्ति की इच्छाको पूरा करनें हेतु उनको सांख्य योगका ज्ञान दिया था । यह योग सत युगके प्रारम्भ में पैदा हुआ और द्वापर के अंत तक लुप्त हो गया था लेकिन गीताके माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण एक सांख्य -योगी के रूप में इस बुद्धि आधारित योग में पुनः प्राण का संचार किया ।
और आज ----
हर हिन्दूके घरमें गीता पुस्तक रूपमें मिलेगा लेकिन शायद ही कोई इस समय इस पृथ्वी पर मिले जिसके ह्रदयमें गीता की उर्जा बह रही हो । गीता जीवनमें दुःखकी छाया तक न पड़नें पाए का मार्ग दिखता है लेकिन इसे वे नहीं देखते जिनको देखना चाहिए अपितु गीताको उनको जबरदस्ती सुनाया जाता है जिनकी आँखोंको मौत बंद कर रही होती है । जबतक भोग तत्त्वोंकी गुलामी जीवन उर्जाका काम करती रहेगी तबतक जीवन एक नदीकी तरह सुख - दुःख दो तटोंके मध्य उनसे टकरा -टकरा कर यों ही सरकती रहेगी ।
~~~~ ॐ ~~~~

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