गीता में सांख्य शब्द भाग 7 - 8

 महर्षि पतंजलि 04 प्रकारकी सबीज या सम्प्रज्ञात समाधि बताते हैं ; वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता।

अब जब आप और हम गीता गंगा में तैर रहे हैं तो क्यों आनंद सम्प्रज्ञात समाधि से दूर रहें !

जब वितर्क - विचार की सीमा चित्त पार कर लेता है तब उसका अगला कदम आनंद में होता है । आनंद ! वह जिसका प्रारम्भ तो कहीं दूर स्मृति में दिखता हो पर जिसका कोइ अंत कहीं न दिखे।

💐यहाँ हम गीता माध्यम से राग से वैराग्य और वैराग्य से कैवल्य तक की ऐसी यात्रा पर चल पड़े हैं जिसका कोई अंत नहीं और जिस यात्रा में उठा हर कदम आनंद और और आनंद में पहुँचाता चला जाता है ।

जितना तर्क - वितर्क करना हो , कर लें कोई कंजूसी करने की जरुरत नहीं , जितना विचार करना होकर लें और निर्विचार हो लें ,  यहाँ भी कंजूसी न करें क्योंकि इन दो की सीमा पार करते ही आनंद की सीमा दिखने लगती है तो ....

अब निम्न स्लाइड्स पर चित्त को एकाग्र करने का वक़्त आ गया है और तर्क - विचार का आनंद लेते हैं ⤵️




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