गीता यात्रा

 

कर्म में भगवान

 

गीता – 9.9

 

कर्मों में प्रभु करता रूप में नहीं -----

द्रष्टा रूप  में रहते हैं .

In all actions the Supreme one is there as a ……

witnesser and …..

not as a doer .

As such actions do not bind Him

 

कर्म एक ऐसा माध्यम है जो सबको सर्वत्र एक समान मिला हुआ है /

कर्म के बिया कोई एक पल भी नहीं रह सकता -----

कोई कर्म दोष रहित भी नहीं होता ------

कर्म करता मनुष्य नहीं , गुण हैं -----

प्रभु गुणों का जन्म देनें वाला है लेकिन स्वयम गुनातीत है …..

और यहाँ गीता कह रहा है की ------

कर्मों में प्रभु करता रूप  में नहीं ------

द्रष्टा रूप में रहते हैं /

जिस दिन मनुष्य यह समझ लेगा की ----

वह जो कर रहा है उसमें प्रभु की भी उपस्थिति है उस दिन -----

उस घडी भोग कर्म योग कर्म में रूपांतरित हो जाएगा //

 

===== ओम ========

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