गीता के दो सूत्र

राग - द्वेष बिमुक्त ब्यक्ति प्रभु का प्रसाद पाता है ॥
गीता - 2.64

राग - द्वेष बिमुक्त ब्यक्ति प्रभु प्रसाद रूप में -----
परम आनंद और ....
परम सत्य में रहता है ॥
गीता - 2.65
गीता की दो बातें आज के लिए पर्याप्त हैं ; आप इनको अपना कर परम सत्य की ओर चलनें
की कोशिश कर सकते हैं ॥
क्या अर्थ लगाना .....
क्या गीता सूत्रों को पौराणिक बातों से जोड़ कर देखना .....
गीता तो ----
स्वयं में ......
परम गीत है .....
गुनगुनाते रहें और .....
इसी गुनगुनानें में नानक जी साहिब जैसा आप भी .....
उसमें कब और कैसे समा जायेंगे ....
कुछ नहीं कहा जा सकता ॥
नानकजी साहिब को तेरह दुबोदिया था और .....
आप गीता में उस सूत्र को तलाश रहे हैं जो .....
आप को परम आनंद से मिला सके ॥
भागना नहीं ----
वह दिन दूर नहीं है ॥

==== ॐ ======

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