गीता सूत्र - 3.37





गीता सूत्र – 3.37


काम:एष:क्रोध:एष:

रजोगुण समुद्भव:


क्रोध काम का रूपांतरण है

दोनों राजस गुण से हैं




Anger is a form of the sex – energy ..

Both are from the natural mode – passionate ..



प्रभु की बानी क्या है?



यदि यह मांन लिया जाए की गीता के सारे श्लोक किसी के द्वारा बोले गए एवं किसी और के द्वारा लिपीबद्ध किये गए हैं तो प्रश्न उठता है की ….......

क्या गीता में कोई भी ऐसा सूत्र नहीं जो प्रभु श्री कृष्ण द्वारा बोला गया हो?

आखिर प्रभु की बानी किसी होती होगी?


प्रभु की बानी सुननें के बाद कोई प्रश्न बुद्धि में नहीं उठता,यह है-परम बानी की पहचान;

परम बानी में वह ऊर्जा होती है जो मनुष्य के अंदर पहुँच कर तन,मन एवं बुद्धि में बह रही

ऊर्जा को निर्विकार कर देती है और निर्विकार ऊर्जा में ज्ञान की किरणें होती हैं जो अज्ञान को

समाप्त कर देती हैं


आप ऊपर गीता का एक सूत्र देखा,क्या आप के मन में कोई संदेह इस सूत्र के प्रति उठ रहा है?

आप गीता के सूत्रों को शांत मन से श्रवन जब करेंगे तब आप को यह धीरे-धीरे

अनुभव होनें लगेगा की

गीता उस का नाम है--------

जिसमें वह ऊर्जा है जो तन,मन एवं बुद्धि को निर्मल कर देती है


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