गीता किरण

बिषय इन्द्रिय संयोगात यत
तत् अग्रे अमृत - उपमं
परिणामे बिषम इव
तत् सुखं राजसं स्मृतं
गीता - 18.38

इन्द्रिय - बिषय सहयोग से जो सुख मिलता है वह प्रारम्भ में
अमृत सा लगता है लेकिन
उसका परिणाम बिष के समान होता है और ऐसे सुख को ........
राजस सुख कहते हैं ॥

Pleasure perceived by senses through their objects is passionate
pleasure । Passionate pleasure appears as nector in the beginning but its

result always lies in poison ।

LET US SEE ......

What is our perception about the pleasure we get through our senses and what is the
definition of this pleasure in Gita ?

गीता यह नहीं कहता की यह न करो ।
गीता कहता है -----
जो कर रहे हो उसे समझो ॥
गीता कहता है ----
जो कर रहे हो वह क्या है ?
गीता कहता है -----
जो कर रहे हो वह तुमको कहाँ ले जा सकता है ?
गीता आप का परम मित्र है ,
इस बात को आप को - हमें समझना है ॥

===== ओम ======







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