गीता सूत्र - 8.3 में कर्म की परिभाषा को कैसे समझें ?

भूत भाव उद्भव कर :
विसर्ग : इति कर्म :
गीता - 8.3

Karma is the name given to the creative force
that brings into existence .
This is the explaination given by Dr. Radhakrishanan .

Karma infact is the creative impulse out of which life,s forms issue .
The whole cosmic evolution is called karma .


गीता के इस श्लोक को समझनें के लिए आप को गीता के कुछ सूत्रों को समझना पड़ेगा
जो आगे दिए जा रहे हैं ।

गीता - 2.62 - 2.63
मन में हो रहे मनन से आसक्ति बनाती है -----
आसक्ति कामना पैदा करती है -----
कामना राजस गुण के तत्त्व की ऊर्जा से है जिसका मूल है - काम ऊर्जा ।
काम - कामना दो नहीं एक ही हैं , कामना टूटनें का संदेह क्रोध उत्पन्न करता है ....
क्रोध में ज्ञान अज्ञान से ढक जाता है और .....
अज्ञान में पाप कर्म होनें की ऊर्जा होती है ॥

गीता - 3.19 - 3.20
आसक्ति रहित कर्म प्रभु की अनुभूति कराता है ॥

गीता - 5.10
आसक्ति रहित कर्म करनें वाला भोग में कमल के पत्ते की भाँती रहता है
उसे भोग की हवा तक नहीं छू पाती ॥

गीता के पांच सूत्र आप को ऊपर दिखाए गए , ये सूत्र
उस ज्ञान - मार्ग के एक अंश मात्र हैं जिनसे कर्म क्या है ?
इस प्रश्न को देखा जा सकता है ॥
अगले अंक में ऐसे ही कुछ और सूत्रों को हम देख सकते हैं ॥

===== ॐ =======

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