गीता अमृत - 7

चलो अब चलते हैं -----

बिषय से मन तक की यात्रा पर .......
गीता श्लोक -----
2.60 - 2.64, 3.6 - 3.7, 3.34, 3.37 - 3.38, 3.40, 14.10, 3.5, 2.45, 3.27, 3.33
ये गीता के सूत्र क्या कहते हैं ? ......
बिषयों के राग - द्वेष मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों को आकर्षित करते हैं , यह आकर्षण उस मनुष्य के अन्दर के गुण - समीकरण [ गीता - 14.10 ] पर निर्भर होता है ।
काम , क्रोध लोभ , कामना , राजस गुण की पहचान हैं और मोह , भय एवं आलस्य तामस गुण को ब्यक्त करते हैं [गीता सूत्र - 14.6, 14.9, 14.10, 14.12, 14.8, 14.17, 18.72 - 18.73 ] और वह ब्यक्ति बिषयों में प्रभु को देखता है जो सत गुण के प्रभाव में होता है ।
जब ज्ञानेन्द्रियाँ बिषयों में पहुँचती हैं तब मन में उस बिषय के प्रति मनन प्रारम्भ हो जाता है , मनन से आसक्ति , आसक्ति से कामना बनती है एवं जब कामना टूटती है तब क्रोध पैदा होता है [गीता - 2।62 - 2।63 ] ।
इंदियों को हठात नहीं नियोजित करना चाहिए , ऐसा करनें से अहंकार और सघन हो जाता है , इन्द्रियों को मन से नियोजित करना उत्तम फल को देता है [ गीता - 3।6, 3।7 ] ।
बिषय की समझ ---
ज्ञानेन्द्रियों की समझ ---
मन - साधना है, जो कर्म - योग की बुनियाद है ।

=====ॐ======

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