गीता अमृत - 3

भोग - भाव का होना , प्रभु मार्ग में एक मजबूत अवरोध है ----गीता ..6.27

गीता की इस बात को समझनें के लिए पहले आप इन श्लोकों को देखें -----
14.7, 14.10, 14.12, 3.37 ---3.43, 5.23, फिर इन श्लोकों को देखिये ---
5.26, 16.21, 2.55, 2.62 - 2.63, 4.10, 4.19 - 4.20, 6.2, 6.4, 6.24, 6.27, 7.20,7.27,7.11, 10.28
और तब आप समझेंगे इनको ------

राजस गुण के तत्त्व क्या हैं ?
आसक्ति, राग -रूप , कामना , संकल्प - विकल्प , लोभ , काम, क्रोध - राजस गुण के तत्त्व हैं -काम से क्रोध उठता है जो पाप की उर्जा है । काम, क्रोध एवं लोभ नरक के द्वार हैं और इनसे अप्रभावित ब्यक्ति योगी होता है ।
परम श्री कृष्ण कहते हैं ---निर्विकार काम ऊर्जा , मैं हूँ [ गीता 7.11] और कामदेव भी मैं हूँ [ गीता - 10.28] , अब आप समझ सकते हैं की गीता श्लोक - 6.27 क्यों कहता है -------
राजस गुण प्रभु के मार्ग में एक मजबूत रूकावट है ।
राजस गुण के प्रभाव में मनुष्य भोग से जुड़ता है , भोग- भगवान् को एक समय एक साथ एक बुद्धि में रखना
असंभव है [ गीता - 2.42 - 2.44 तक ] ।
काम + बासना = नरक , और
काम - बासना = प्रभु का परम धाम
सीधा सा समीकरण आप अपनें बुद्धि में रख कर अपनें जीवन की यात्रा करें , आप स्वतः परम धाम में होंगे ।

=====ॐ=====

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