तंत्र और योग ----13

अवंतिका चक्र [ Throat Centre ]
मूलाधार के बाद काम- नाभि चक्रों की पकड़ में अनेक तत्त्व हैं लेकीन ह्रदय से आगे की यात्रा में अहंकार एक प्रमुख तत्त्व है । अवंतिका चक्र को उज्जैन तीर्थ माना जाता है । उज्जैन भारत का एक प्राचीनतम धार्मिक तीर्थ है जहां से पौराणिक युग का प्रारम्भ माना जाना अतिशयोक्ति नहीं होगा ।
जब आप की आवाज लोगों को सम्मोहित करनें लगे तब आप को विशेष रूप से होश मय रहना चाहिए ।
अवन्तिका चक्र केन्द्रित ब्यक्ति धीरे-धीरे लोगों से घिरनें लगता है , अहंकार सघन होनें लगता है और यह
स्थिति उस ब्यक्ति को नीचे की ओर धीरे-धीरे सरकानें लगती है और वह साधक जिसको परम मय होना था , वह
छुपा हुआ भोगी का जीवन बितानें लग जाता है ।

यदि योगियों के इतिहास को आप देखें तो आप को दो प्रकार के योगी मिलेंगे ; एक वे हैं जिनके पास सीमित शब्द हैं और कभी- कभी बोलवाए जाते हैं और दूसरे वे हैं जो दिन-रात बोलते ही रहते हैं । दोनों उत्तम हैं लेकीन बोलनें वाले संसार से बच नहीं पाते ।

तंत्र में अवंतिका चक्र के माध्यम से साधक एक ओंकार में पहुंचता है जहां उसे ध्वनि रहित ध्वनि की अनुभूति होती है और जो संसार में आश्रम बना कर बस जाते हैं उनमें और भोगी में कोई ख़ास अंतर नहीं रहता ।
हमारे योगी बोल कर अपनें को तो बर्बाद किया ही लोगों को भी गुमराह किया है । गीता कहता है ------
ज्ञान प्राप्त योगी को चाहिए की वह भोगी को उसके मार्ग में धार्मिक बातें बता कर अवरोध न पैदा करे अपितु वह
अपनें मार्ग की ओर उन्हें अपनें कर्म-स्वभाव से आकर्षित करें ।

योगी और भोगी में एक अंतर है -----
भोगी निष्काम कुछ नहीं करता और
योगी के सभी कर्म निष्काम होते हैं ।

======ॐ======

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध