गीता अमृत - 5

इन्द्रियों का बसेरा कहाँ है ?
[क] प्रकृत - पुरुष का सम्बन्ध
[ख] भोग - योग का सम्बन्ध
[ग] संसार - मनुष्य का सम्बन्ध ......यह सब एक हैं ---कैसे देखिये , यहाँ
गीता श्लोक - 3.34, 18.38, 5.22, 2.14 कहते हैं -----

गीता श्लोक - 3.34
बिषयों में छिपे राग - द्वेष इन्द्रियों को आकर्षित करते हैं ।
गीता श्लोक - 18.38
इन्द्रिय सुख राजस सुख है जो भोग के समय अमृत सा लगता है लेकीन इस सुख में बिष होता है ।
गीता श्लोक - 5.22
इन्द्रिय एवं बिषयों के योग से जो होता है वह भोग है जिसके सुख में दुःख छिपा होता है ।
गीता श्लोक - 2.14
इन्द्रिय सुख क्षणिक होते हैं ।

इन्द्रियाँ मनुष्य को प्रकृति से जोडती हैं , यहाँ तक बात उत्तम बात है लेकीन गुणों से प्रभावित इन्द्रिया बिषयों में राग- द्वेष देख कर इस जोड़ को भोग बना देती हैं । जो गुणों के माध्यम से इन्द्रियों की गति को समझता है , वह योगी होता है और जो नहीं समझता वह भोगी होता है । संसार का ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से ही संभव है और यह
ज्ञान प्रकृति - पुरुष को स्पष्ट करता है ।
संसार में भोग न होते , इन्द्रियाँ बिषयों से आकर्षित न होती तो कैसे पता चलता की भोग क्या है ? और योग का
मार्ग कैसे दीखता ?

इन्द्रिय - बिषय का ज्ञान कर्म - योग की बुनियाद है ।

=====ॐ=======

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