गीता अमृत - 1
कर्म - योग से परम - धाम
कर्म - योग में आसक्ति रहित कर्म से परम - धाम कैसे मिलता है ? इस रहस्य के लिए पहले इन श्लोकों में
डुबकी लगाइए .......
[क] गीता सूत्र - 2.47 - 2.51, 3.19 - 3.20, 18.6, 18.9, 18.11, 18.49 - 18.50, 6.1
जब आप इस डुबकी का रस - पान कर लेंगे तब इन सूत्रों में अपनें मन - बुद्धि को लगाइए ........
[ख] गीता सूत्र - 3.34, 2.67 - 2.68, 2.62 - 2.63, 3.37, और तब देखें इन सूत्रों को ..........
[ग] गीता सूत्र - 3.34, 2.67 - 2.68, 2.62 - 2.63, 3.37, 4.18, जब आप इन सूत्रों में अपनें को मिला देंगे तब
आप को यह मिलेगा --------
आसक्ति रहित कर्म से राजा जनक की तरह सिद्धि मिलती है । कर्म में अकर्म देखने वाला एवं अकर्म में कर्म देखनें वाला
योगी नैष्कर्म की सिद्धि में होता है । यह सिद्धि ज्ञान योग की परा निष्ठा है जिसमें योगी हर पल प्रभु मय होता है ।
प्रभु मय योगी , दुर्लभ होते हैं ।
आप ऊपर दिए गए श्लोकों को अपनाइए और तब आप गीता के कर्म - योग के रहस्य में पहुँच सकते हैं ।
====ॐ=======
कर्म - योग में आसक्ति रहित कर्म से परम - धाम कैसे मिलता है ? इस रहस्य के लिए पहले इन श्लोकों में
डुबकी लगाइए .......
[क] गीता सूत्र - 2.47 - 2.51, 3.19 - 3.20, 18.6, 18.9, 18.11, 18.49 - 18.50, 6.1
जब आप इस डुबकी का रस - पान कर लेंगे तब इन सूत्रों में अपनें मन - बुद्धि को लगाइए ........
[ख] गीता सूत्र - 3.34, 2.67 - 2.68, 2.62 - 2.63, 3.37, और तब देखें इन सूत्रों को ..........
[ग] गीता सूत्र - 3.34, 2.67 - 2.68, 2.62 - 2.63, 3.37, 4.18, जब आप इन सूत्रों में अपनें को मिला देंगे तब
आप को यह मिलेगा --------
आसक्ति रहित कर्म से राजा जनक की तरह सिद्धि मिलती है । कर्म में अकर्म देखने वाला एवं अकर्म में कर्म देखनें वाला
योगी नैष्कर्म की सिद्धि में होता है । यह सिद्धि ज्ञान योग की परा निष्ठा है जिसमें योगी हर पल प्रभु मय होता है ।
प्रभु मय योगी , दुर्लभ होते हैं ।
आप ऊपर दिए गए श्लोकों को अपनाइए और तब आप गीता के कर्म - योग के रहस्य में पहुँच सकते हैं ।
====ॐ=======
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