तंत्र और योग --16

तंत्र में स्त्री - उर्जा को निर्विकार एवं साधना - श्रोत का दर्जा मिला हुआ है ।

स्त्री जबतक माँ नहीं बनती , अधूरी रहती है ।

पुरुष की उर्जा अन्दर से बाहर की ओर पलायन करना चाहती है और .....

स्त्री की उर्जा अन्दर - अन्दर एक गति से अपने चक्र में घुमती है ।

पुरुष अधूरापन को महशूश करता रहता है और ......

स्त्री पूर्ण होती है ।

स्त्री को प्रकृति की तरफ से प्रसाद रूप में , ध्यान मिला हुआ है और ....

पुरुष को ध्यान में बैठनें का अभ्यास करना पड़ता है ।

स्त्री अपनें पुरुष में शिव को देखती है , माँ के रूप में अपनें बच्चे में निराकार परमात्मा को साकार रूप में देखती है लेकीन पुरुष एकदम भिन्न है ।

यदि स्त्री का साथ न होता तो पुरुष घर - मंदिर का निर्माण न करता , वह खाना बदोश का जीवन जीता ।

पुरुष हर पल नए की खोज में ब्यस्त रहता है और .....

स्त्री अपनें पुरानें को हर दिन नए के रूप में देख कर तृप्त रहती है ।

पुरुष प्रकाश की गति से भागना चाहता है और .....

स्त्री को कोई जल्दी नहीं ।

पुरुष समय के अधीन है और .....

स्त्री स्पेस में जीती है ।

स्त्री ह्रदय चक्र पर होती है और ....

पुरुष काम [कामना] चक्र पर होता है ।

स्त्री के प्यार को बासना बनाता है - पुरुष और.....

स्त्री पुरुष के बासना को प्यार में बदलना चाहती है और ......

यह सब अनजानें में होता है ।

तंत्र में इन सब को मिलाकर ध्यान बिधियाँ हैं जो भोग- तत्वों के प्रति होश पैदा करती हैं ।



=====ॐ====

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