गीता अमृत - 28

कौन प्रभु का प्रसाद पाता है ?

[क] नियोजित इन्द्रियों वाला , स्थिर मन - बुद्धि वाला , भोग के सम्मोहन से अप्रभावित सम भाव वाला ब्यक्ति प्रभु के प्रसाद को पाता है ---गीता सूत्र ....2.56 - 2.72, 14.22 - 14.27
[ख] गुण तत्वों जैसे काम , कामना , अहंकार , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य से प्रभावित न होनें वाला ब्यक्ति परम प्यार के रूप में प्रभु - प्रसाद को प्राप्त करता है ---गीता सूत्र ....3.27, 3.37 - 3.43, 4.10 , 5.23, 16.21
[ग] आसक्ति रहित परा भक्त परम आनंद के रूप में प्रभु - प्रसाद को पाता है ----गीता सूत्र .... 18.4 - 18.55
[घ] प्रकृति - पुरुष को समझनें वाला तत्त्व ज्ञान के रूप में प्रभु - प्रसाद को प्राप्त करता है ----गीता सूत्र ....
7.4 - 7.6, 13.5 - 13.6, 14.3 - 14.4, 14.19, 14.23, 13.19, 13.20, 15.16
[च] कर्म में अकर्म का भाव एवं अकर्म में कर्म का भाव रखनें वाला प्रभु - प्रसाद को पाता है ----गीता सूत्र ....4.18
[छ] माया मुक्त योगी गुणों को करता देखता हुआ स्वयं को साक्षी समझनें वाला तत्व - ज्ञानी के रूप में ज्ञान का परम प्रसाद पाता है ----गीता सूत्र .... 7.12 - 7.15. 14.19, 14.23
[ज] परम प्यार में डूबे योगी के लिए प्रभु निराकार नहीं रह पाता ---गीता सूत्र ....
6.29 - 6.30, 9.29, 13.28 - 13.30, 13.34
शिव कहते हैं ---स्मृतिया मेरी गुलाम हैं मैं उनका गुलाम नहीं , यह अनुभूति उनकी है जो तत्त्व - ग्यानी हैं -
गीता कहता है तत्त्व ज्ञानी अपना मित्र होता है ----गीता सूत्र ... 6.5 - 6.6
भोग संसार में कमलवत रहनें वाला प्रभु - प्रसाद से परिपूर्ण होता है , गीता सूत्र ----5.10 - 5.20

आप कब प्रभु के प्रसाद को ग्रहण कर रहे हैं ?

======ॐ=====

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