गीता अमृत - 12

बुद्धि हींन कौन है ?---गीता ...7.24

गीता के माध्यम से आप कृष्ण मय हो सकें , बस यही मेरा उद्धेश्य है ।
आप मेरे लेखों के माध्यम से मुझसे क्यों जुड़ते हैं ? यदि जुडना ही है तो ......
गीता की मैत्री से परम श्री कृष्ण से जुड़िये और तब यह संसार आप को कृष्ण मय दिखनें लगेगा ।

गीता सूत्र - 7.24 में परम कहते हैं -----
मुझे जन्म - जीवन एवं मृत्यु की परिधि में सिमित समझनें वाले बुद्धि हींन हैं , वे मुझे सनातन , अविनाशी , मन - बुद्धि से परे परम भाव , अब्यक्त भाव की अनुभूति नही समझते । अब गीता सूत्र - 18.29 - 18.32 तक को देखिये
और फिर गीता सूत्र - 2.41, 2.66, 7.10 को देखिये- जिनमें परम कहते हैं -----
गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं , उनकी अपनी - अपनी बुद्धियाँ हैं , राजस एवं तामस बुद्धि वाले बुद्धि हींन होते हैं क्यों की उनकी बुद्धियों में अहंकार , चाह एवं भ्रम होते हैं , ऐसी बुद्धि अनिश्चयात्मिका बुद्धि कह लाती है ।
सात्विक बुद्धि निश्चयात्मिका बुद्धि होती है जो परम ऊर्जा से परिपूर्ण होती है । इन्द्रियों से मिलनें वाला आनंद , भोग - आनंद होता है लेकीन निर्विकार बुद्धि से जो आनंद उपजता है वह होता है - [गीता - 6.21 ] परमानंद लेकीन ऐसे लोग दुर्लभ होते हैं ।

प्रभु की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है [ गीता - 12.3 - 12.4 ], एक समय एक साथ भोग - भगवान् को एक बुद्धि में रखना असंभव है [ गीता - 2.42 - 2.44 ] और आप जब गीता सूत्र - 8.20- 8.22, 9.4, 10.2 - 10.3 जानेंगे तब पता चलेगा की सत भावातीत है [ गीता - 2.16 ] और यह बात आप को गीता सूत्र - 7.12 - 7.13 से भी मिलेगी ।

मेरा काम है आप को गीता की ओर खीचना, जो मैं करता रहूंगा ,आप आरहे हैं या नहीं - आप को पता होगा ।
कृष्ण सर्वत्र हैं आप के अन्दर उनके प्रति आस्था होनी चाहिए ।

=====ॐ=======

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