क्रोध के रंग अनेक


** जब यह मह्शूश होनें लगे की मेरा कद छोटा हो रहा है तब क्रोध उपजता है ।
** कामना टूटनें का भय , क्रोध उत्पन्न करता है ।
** अहंकार पर जब चोट पड़ती है तब रोध उठता है ।
** क्रोध अहंकार साकार रूप है ।
** क्रोध रहित ब्यक्ति स्थिर बुद्धि एवं ग्यानी होता है ।

गीता प्रसाद रूप में यहाँ पांच सूत्र दिए गए हैं जो किसी भी ब्यक्ति को रूपांतरित करनें के लिए पर्याप्त हैं ।
क्रोध दो प्रकार का हो सकता है ; एक राजस गुण में और दूसरा तामस गुण में । राजस गुण का क्रोध
परिधि पर होनें से स्पष्ट दिखता है लेकीन तामस गुण का क्रोध सिकुड़ा हुआ अत्य अधिक पैना , देर तक टिकने
वाला बहुत खतरनाक हो सकता है और यह बाहर दिखता भी नहीं ।

मनुष्य के अन्दर एक ऊर्जा है जो स्वभावतः निर्विकार होती है लेकीन मन - बुद्धी तंत्र का संसार का अनुभव
जो गुण आधारित होता है , वह इस ऊर्जा को सविकार बना देता है और यहाँ से मनुष्य का रुख प्रभु को ओर से
भोग की ओर हो जाता है ।
राजस और तामस गुणों के तत्वों की पकड़ को ढीली करना ही गीता - योग है ।

====== ॐ =======

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