बुद्धि योग गीता भाग - 08


गीता में प्रभु कहे हैं ------

पृथ्वी के धारण करनें की शक्ति [ गुरुत्वाकर्षण ] मैं हूँ ।
सत्रहवीं शताब्दी में न्यूटन सेव के फल को नीचे गिरते देख कर गुरुत्वाकर्षण की गणित बनाई लेकीन पूर्ण रूप से
इसे स्पष्ट न कर पाए । बीसवी शताब्दी के प्रारम्भ में आइन्स्टाइन भी ग्रेविटी पर सोचना प्रारम्भ किया और
अपना पूरा जीवन ग्रेविटी की खोज में लगा दिए पर ठीक ढंग से ब्यक्त न कर पाए । आइन्स्टाइन कहते हैं ---
टाइम स्पेस करव सीधी रेखाओं से निर्मित नहीं है , करव रेखाओं से है , जिसके फल स्वरुप सभी ग्रहों की अपनी - अपनी ग्रेविटी हैं ।

ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाएं तीन प्रकार की गतियों से प्रभावित हैं : सभी सूचनाएं अपनें केंद्र के चारों ओर घूम रही हैं ,
सभी अपने सौर्य मंडल के प्रमुख के चारों तरफ चक्कर लगा रही हैं और सभी गलेक्सी अपनें - अपनें केन्द्रों
के चारों ओर बहुत तेज गति से भाग रही हैं , सभी सूचनाएं इस गति से भी गहरी प्रभावित होती होंगी ।
ब्रह्माण्ड की तीन गतियाँ गुरुत्वाकर्षण शक्ति का कारन हैं - यह मेरा विचार है ।
गीता में प्रभु वह है जो ब्यक्त न किया जा सके पर उसकी अनुभूति हो । आइन्ताइन के सामनें यही समस्या थी , वह
जिसकी अनुभूति किये उसकी गणित बनानें के लिए उस समय का विज्ञान तैयार न था , लेकीन अब सौ साल बाद
उनकी कही गयी हर बात की गणित बन रही है पर गुरुत्वा कर्षण अभी भी राज ही है ।

====== ॐ =======

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