गीता मर्म - 08


गीता के द्वार अनेक

गीता में प्रवेश करना अति आसान है क्योंकि गीता मात्र एक ऐसा साधना श्रोत है जिसमें एक नहीं अनेक द्वार हैं
जैसे ध्यान , भक्ति , कर्म योग , सांख्य - योग आदि ।

गीता में प्रभु कभी साकार प्रभु के रूप में बोलते हैं तो कभी निराकार प्रभु के रूप में और यह बुद्धि केन्द्रित लोगों के लिए एक संदेह का श्रोत बन जाता है । गीता में प्रभु स्वयं को परमेश्वर कहते हैं और कभी कहते हैं -- जा तूं उस परमेश्वर की शरण में जो सब के ह्रदय में है और अपनी माया से सब को यंत्रवत घुमाता रहता है ।
गीता का परमात्मा न कुछ देता है न कुछ लेता है , वह एक द्रष्टा है और गीता का परमेश्वर सब
कुछ देनें वाला है ,
उसके बिना कुछ संभव नहीं । बुद्धि केन्द्रित लोगों के लिए इस प्रकार की बातें भ्रम पैदा
करती हैं लेकीन जब
आप गीता को अपनाकर बार - बार पढेंगे तो सब कुछ स्वतः स्पष्ट हो जाएगा ।

गीता के अनेक द्वारों में एक द्वार आप के लिए भी है , जब दिल करे आप उसके माध्यम से
गीता में प्रवेश कर सकते हैं ।
गीता तत्त्व विज्ञान के माध्यम से आप सादर आमंत्रित हैं ॥

॥ ====== ॐ ==== ॥

Comments

क्या कहने साहब ।
जबाब नहीं निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद । साधुवाद । साधुवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
ब्लाग पर आना सार्थक हुआ ।
काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति ।
आपको दिल से बधाई ।
ये सृजन यूँ ही चलता रहे ।
साधुवाद...पुनः साधुवाद ।
आत्म दर्शन

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध