गीता मर्म - 11


गीता श्लोक - 7.2

यह श्लोक अर्जुन के प्रश्न - 07 के सन्दर्भ में बोला गया है । अर्जुन का प्रश्न है -- ऐसे योगी जिनका योग खंडित हो जाता है , उनकी गति कैसी होती है ?
गीता सूत्र 7.2 में प्रभु कह रहे हैं .....
अब मैं तेरे को ऐसा ज्ञान बतानें जा रहा हूँ जिसको जाननें के बाद और जाननें को कुछ बचता नहीं और यह ज्ञान सविज्ञान है ।
पहले हम इस सुत्रके सन्दर्भ में ज्ञान - विज्ञान को समझते हैं ........
ज्ञान क्या है ?
योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है [ गीता - 4.38 ], क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध , ज्ञान है [ गीता - 13.3 ] और क्षेत्र है , मनुष्य की देह एवं इसका ज्ञाता अर्थात प्रभु है , क्षेत्रज्ञ [ गीता - 13.2 ] , तो आइये देखते हैं अध्याय - 07 के ज्ञान - विज्ञान को । अध्याय सात में कुल 30 श्लोक हैं जिमें प्रभु बताते हैं ......
[क] मैं कौन हूँ ?
[ख] भूतों की रचना - रहस्य क्या है ?
[ ग] ज्ञान प्राप्त योगी दुर्लभ हैं ॥
[क] मैं कौन हूँ ?
यहाँ प्रभु कहरहे हैं --- संसार का सूत्र धार , बीज , जीवन , आदि - अंत मैं हूँ , मैं सूर्य -चन्द्रमा का प्रकाश ।
पृथ्वी की सुगंध , अग्नि की ऊर्जा , कामना रहित बल , धर्म के अनुकूल काम , त्रिकाल दर्शी , सनातन हूँ ।
[ख] भूतों की रचना रहस्य
माया से माया में अपरा - परा प्रकृतियों एवं आत्मा - परमात्मा के योग का नाम भूत है । अपरा में आठ तत्त्व
हैं जैसे पांच महा भूत , मन , बुद्धि एवं अहंकार और परा , चेतना को कहते हैं ।
[ग] ज्ञान प्राप्त योगी दुर्लभ हैं
यहाँ प्रभु कहते हैं .....
## माया का गुलाम मुझे नहीं समझ सकता ....
## माया का गुलाम आसुरी स्वभाव का होता है ....
## माया परे प्रभु का आलम है और प्रभु माया पति है ....
## हजारों लोग प्रभु की ओर चलते हैं , उनमें से कोई - कोई सिद्धि प्राप्त करता है और उनमें ......
## कोई प्रभु को तत्व से जाननें में समर्थ होता है ॥

===== ॐ ========

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