गीता मर्म - 05


गीता श्लोक - 2.51

कर्म यदि कर्म फल की चाह के बिना हो तो वह कर्म मुक्ति का द्वार बन सकता है ।

गीता बुद्धि - योग की गणित है , जितना सोच सकें , सोंचे और सोच - सोच कर जब बुद्धि थक जायेगी तब जो मिलेगा
वह आनंद से भर देगा ।
आइन्स्टाइन जब कई दिनों तक एकांत में मॉस - एनेर्जी समीकार पाया तब उनसे रहा न गया
और निकल पड़े
अपनें आनंद को बाटनें लेकीन समझनें वाके कितनें थे ?
बुद्ध को जब ज्ञान मिला , चल पड़े उसे बाटनें लेकीन
उनको समझनें वाले लोग कितनें थे ?
जब आप गीता के इस सूत्र को समझ लेंगे और आप का कण - कण आनंद से भर उठेगा
तब आप की भी
स्थिति आइन्स्टाइन - बुद्ध जैसी ही होंगी ।

====== ॐ =======

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