ईशोपनिषद् के अंतिम 14 - 18 श्लोक

 


ईशोपनिषद् श्लोक :14 - 17

अस्तित्व - अनस्तित्व को जो ठीक से जानता है , 

वह अनस्तित्व मृत्यु को पार कर अस्तित्व अमरत्व को प्राप्त करता है ।

सूत्र - 15

सत्य का मुख चमकीले सुनहरे ढक्कन से ढका हुआ है । हे पोषक सूर्य देव ! सत्य के विधान की उपलब्धि हेतु एवं साक्षात् दर्शन के लिए इस सुनहरे ढक्कन को अवश्य हटा दें ।

सूत्र - 16

हे भगवान , हे आदि विचारक , हे ब्रह्माण्ड के पालक , हे नियामक , शुद्ध भक्तों के लक्ष्य ,प्रजापतियों के शुभ चिंतक ! कृपा करके आप अपने दिव्य किरणों के तेज को हटा लें जिससे मैं आपके आनंदमय स्वरुप का दर्शन कर सकूं । आप सूर्यके समान शाश्वत परम पुरुष भगवान हैं , जिस तरह कि मैं हूँ ।

सूत्र - 17

इस क्षणभंगुर शरीर को भष्म जो जाने दें और प्राणवायु को वायु के पूर्ण कोष में मिल जाने दें ।

अब हे भगवान ! मेरे समस्त यज्ञों को स्मरण करें और चुंकि आप चरम भोक्ता हैं अतएव मैंने आजके लिए जो कुछ किया है , उसे स्मरण करें ।

ईशोपनिषद् श्लोक :18

हे अग्नि के समान शक्तिशाली भगवान , हे सर्वशक्तिमान ! अब मैं आपको नमस्कार करता हूँ और आपके चरणों पर दण्डवत प्रणाम करता हूँ ।

 हे भगवान ! आप अपनें तक पहुंचने के लिए मुझे सही मार्ग पर ले चलें और चूँकि आप मेरे द्वारा भूतकाल में किया गया सबकुछ जानते हैं अतएव मुझे विगत पापों के फलों से मुक्त कर दें जिससे मेरी प्रगति में कोई अवरोध न आये ।


ॐ ईशोपनिषद् यहाँ पूरा होता है  ॐ

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