ईशोपनिषद् सूत्र - 03

 आज प्रातः ब्रह्म बेला में प्रस्तुत है ईशोपनिषद् का श्लोक - 03।

ईशोपनिषद् एक ऐसा उपनिषद् है जिसकी व्याख्या व्यास से लेकर चंद्रमोहन रजनीश तक सभीं भारतीय दर्शन के लोगों ने की है।

एक बात चित्त में रखें कि उपनिषद् वेदांत दर्शन से सम्बंधित हैं।


ईशोपनिषद् श्लोक :03

श्लोक : 3 का सार

जो  अपनी आत्मा मार रखा है वह उस लोक में पहुँचता है जहाँ सूर्य की किरणे भी नहीं पहुँचती , घोर अंधकार रहता है।

यहाँ गीता श्लोक : 13.33 को देखें जिसमें प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं …

जैसे एक सूर्य सभीं लोकों को प्रकाशित करता है वैसे देह में जीवात्मा संपूर्ण देह को प्रकाशित करता है ।

यदि ऐसा है फिर लोकों से परे वह कौन सी जगह होगी जहाँ ऐसा3 लोग जाते होंगे !

आत्माको मारना क्या  है ? 

 गुण आधारित तीन प्रकार के लोग हैं ; सात्त्विक गुण केंद्रित , राजस गुण केंद्रित और तामस गुण केंदित । पहले प्रकार के लोग दैवी सम्पदा के लोग होते हैं और अन्य दो आसुरी सम्पदा वाले होते हैं । 

सात्त्विक गुण केंदित के निवृत्ति परक कर्म होते हैं और शेष दो के प्रवित्ति परक कर्म होते हैं । 

जो लोग आसूरी सम्पदा के लोगों के लिए  कहा गया है कि जो लोग अपनी आत्मा को मार रखा है । 

अविद्या में डूबे चित्त वाले ज्ञान को अज्ञान , अज्ञान को ज्ञान , सत्य को असत्य और असत्य को सत्य समझते हैं । ऐसे लोगों का अहंकार परिधि पर होता है जो दूर से दिखता है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ 20 अक्टूबर

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