गीता अमृत - 75

किनमें प्रभु झांकता है ?

[क] क्या राम की कथा सुननें वाले में या सुनानें वाले में ?
[ख] क्या गीता सुननें वाले में या सुनानें वाले में ?
[ग] क्या गायत्री जप करनें वाले में या करानें वाले में ?

अब कुछ और बातों को भी देखते हैं ---------

** क्या कबीरजी राम मय न थे ?
** क्या नानकजी साहिब राम से परिपूर्ण न थे ?
** क्या शांडिल्य ऋषि श्री कृष्ण मय न थे ?
** क्या मीरा - राधा कृष्ण मय न थीं ?

अब हमें सोचना चाहिए की प्रभु मय कौन होता है ?
वेदों को पढ़नें वाला , उपनिषद् का पाठ करनें वाला , गीता का जाप करनें वाला , मंदिर में प्रति दिन पूजन करनें वाला ,
प्रभु मय हो सकता है और नहीं भी हो सकता ।
वह जो प्रभु की प्रीति में समाया हुआ होता है , प्रभु मय होता है
और जो प्रभु का प्यारा अपनें को दिखाना चाहता है वह भी बाहर - बाहर से ,
वह कभी भी प्रभु का प्यारा नहीं हो सकता ।

प्रभु का प्यारा वह है जो -----
पुरे ब्रह्माण्ड में दो नहीं एक को देखता है ......
सब को आत्मा - परमात्मा से आत्मा - परमात्मा में देखता है ......
जिसके पास हाँ और ना नही होते केवल हाँ होता है .....
जो द्वैत्य के जीवन में नहीं जीता .....
जिसके लिए सुख - दुःख एक तरह होते हैं .......

===== ॐ ======

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध