गीता अमृत - 71

गीता श्लोक - 18.51 - 18.53 तक

यहाँ गीता में परम श्री कृष्ण कह रहे हैं .........
[क] विशुद्धि बुद्धि वाला .... गीता सूत्र - 2.41, 2.66, 6.21 को भी यहाँ देखें
[ख] साकाहारी नियमित भोजन करनें वाला .... गीता सूत्र - 6.16, 17.8 को भी यहाँ देखें
[ग] शब्दादि बिषयों का त्याग करनें वाला ....
[घ] सात्विक धारण शक्ति वाला .... गीता सूत्र - 18.33 को भी यहाँ देखें
[च] जिसका तन , मन एवं बुद्धि नियंत्रित हों .... गीता सूत्र - 3.6 - 33.7 को यहाँ देखा जा सकता है
[छ] जो राग - द्वेष से अप्रभावित हो .... गीता सूत्र - 3.34 को यहाँ देखें
[ज] जो बैरागी अवस्था में रहता हो ..... गीता सूत्र - 15.3 को यहाँ देखें
[झ] अहंकार [ गीता - 3.27 ], बल , घमंड [ गीता - 3.6] , काम [ गीता - 3,37, 5.23, 5.26, 16.21 ]
से जो अप्रभावित रहता हो
और जो ध्यान के माध्यम से परम ब्रह्म में डूबा हो [ गीता - 13.24 ] ------
वह .......
प्रभुमय .....
होता है ।

====== ॐ ======

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