गीता अमृत - 63

किसी का सुख किसी का दुःख है


गीता श्लोक - 18.36 - 18.39 में परम श्री कृष्ण कहते हैं .... गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं
और उनका अपना - अपना सुख - दुःख हैं ।
[क] तामस सुख क्या है ? गीता श्लोक - 18.३९
मोह , भय एवंआलस्य से मिलनें वाला सुख , तामस - सुख है ।
[ख] राजस सुख क्या है ? गीता 18.38, 2.14, 5.22
इन्द्रिय सुख राजस सुख है , जिसमें दुःख का बीज होता है । राजस सुख अल्प समय का होता है जो भोग के समय सुख सा लगता है लेकीन इस सुख का परिणाम दुःख होता है ।
[ग] सात्विक सुख क्या है ? गीता श्लोक - 18.36 -18.37, 6.42, 7.3, 12.5, 14.20, 6.29 - 6.30, 9.29
सात्विक सुख इन्द्रिय सुख नहीं है , यह तो साधना का फल है जहां तक पहुंचनें में बहुत अवरोध हैं ।
जब तन , मन में कोई चाह न रह जाए , जो मिल रहा हो उसमें ही तृप्त रहे, हर पल प्रभु में गुजरें तब वह ब्यक्ति
सात्विक सुख में होता है ।
कहना आसान , सुनना और आसान लेकीन होना अति कठिन है ।
जब तक कोई स्वयं को बदलता नहीं तब तक सात्विक ऊर्जा प्राप्त करना अति
कठिन ही होगा ।

* पैसे से यदि भक्ति मिले ....
* पैसे से यदि भगवान् मिले .....
* भोग में यदि भगवान् बसे .....
तो कठिन क्या है ? लेकीन ऐसा है नहीं , कुछ पाने केलिए कुछ खोना ही पड़ता है , लेकीन हम कुछ
खोनें को तैयार नही ।
भोगी ब्यक्ति में एक का सुख दूसरे का दुःख हो सकता है लेकीन योगी का सुख रूपांतरित नहीं होता ।

===== ॐ =====

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