गीता अध्याय - 3 की एक झलक

 


एक  झलक ⬇️

🌷अध्याय : 03 के आकर्षण

कर्म मनुष्य स्वयं नहीं करता , उसके अंदर स्थित प्रकृति मूलक तीन गुण कर्म करवाते हैं तथा करता का भाव अहँकार की उपज है ।

➡ देह में स्थित तीन गुणों में हो रहा हर पल परिवर्तन , कर्म करने की ऊर्जा उत्पन्न करता है ।

➡ माया त्रिगुणी है और हम आत्मा - माया के योग  हैं । 

➡ हठात्  कर्म इंद्रियोंका नियोजन करना मूढ़ता लाता है क्योंकि मन तो बिषयों का चिंतन करता ही रहता है अतः मनसे इंद्रिय नियोजन होना चाहिए । 

➡ राजस गुण से उत्पन्न कामका रूपांतरण ही क्रोध है जो पाप करवाता है ।

   अध्याय : 3 के ध्यानोपयोगी श्लोक ⤵️

क्र सं

श्लोक

बिषय 


4,5,19 - 20 27 - 29  ( 7 )

कर्म , गुण - कर्म विभाग


6 , 7 , 34 (3)

इन्द्रिय नियोजन +बिषय


17 , 18 (2)

आत्मा केंद्रित


37 - 43 (8)

टोटल - 20

काम


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