गीता अध्याय - 13 एक झलक

 


एक  झलक ⬇️

गीता अध्याय : 13 का सार 

🌷 क्षेत्र - क्षेत्रज्ञका बोध , ज्ञान है ।

प्रकृति - पुरुष अनादि हैं ।

कार्य - करण प्रकृति मूलक हैं ।

क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ को वेदों एवं  ब्रह्म सूत्र में भी बताया गया है।

● देह क्षेत्र है और देह में स्थित मैं ( कृष्ण ) क्षेत्रज्ञ कहलाता हूँ ।

◆ क्षेत्र सविकार है और क्षेत्र में स्थित क्षेत्री (प्रभु ) निर्विकार हैं ।

● 11इंद्रियों , अहँकार , बुद्धि , 05 महाभूत , 05 तन्मात्र , चेतना , धृतिका , विकार , सुख - दुःख , इच्छा - द्वेषादि युक्त यह क्षेत्र है । 

🌷 ब्रह्म न सत् है , न असत् । वह इंद्रिय रहित है पर इंद्रिय बिषयों को जानता है ।

◆ उसकी इन्द्रियाँ सर्वत्र हैं । संपूर्ण ब्रह्माण्ड उससे एवं उसमें है ।

★ वह अनादि , अव्यय , अविज्ञेय और निर्गुण है । 

अध्याय - 13 के प्रमुख विषय⤵️

श्लोक

बिषय

श्लोको का योग 

1 - 6

26 

ज्ञान की परिभाषा 

क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ + सर्ग 

07

7 - 11

ज्ञान - अज्ञान

05

12 - 18

24 - 25

ब्रह्म

09

19 - 23

29

प्रकृति - पुरुष

06

27 , 28 , 30 - 34

परमेश्वर / आत्मा

07

योग 

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34


~~◆◆ ॐ ◆◆~~

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