गीता में झांको
गीता में प्रभु अर्जुन को बता रहे हैं : -----
गीता श्लोक - 7.12 + 10.4 + 10.5
"नाना प्रकार के सभीं भाव मुझ से हैं , गुण आधारित सभीं भाव मुझ से हैं लेकिन उन भावों में मैं नहीं "गीता श्लोक - 7.13
"तीन गुणों के भावों से सभीं लोग सम्मोहित हैं और मुझ अब्यय को नही समझता "गीता श्लोक - 7.14 + 7.15
" तीन गुणों के मध्यम को मेरी माया है और माया मोहित ब्यक्ति मुझे नहीं समझता "भाव क्या है ?
भाव वह लहर है जिसमें मन बहता हैमाया तीन गुणों से है , माया से माया में वैज्ञानिक Time space है और टाइम स्पेस में जीव हैं तथा ब्रह्माण्ड की सभीं अन्य सूचनाएं हैं /
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं [ श्लोक - 18.40 ] ------
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर तीन गुणों का प्रभाव न पड़ता हो अर्थात सभीं के ऊपर तीन गुणों की छाया पड़ती रहती है और ये गुण प्रभु निर्मित हैं , सोचनें जैसी बात है - तीन गुण प्रभु निर्मित हैं लेकिन प्रभु गुणातीत है अर्थात गुणों को पैदा करनें वाला स्वयं गुण रहित है /
गीता का तत्त्व - विज्ञान ऐसा बिषय है जिसका प्रारम्भ तो भौतिक स्तर पर दिखता है लेकिन इसके अंत के बारे में सोचना संभव नहीं , तभी .....
श्री नानक जी साहिब कहते हैं ----
"सोचै सोच न् होवहीं , जो सोची लख बार "
चाहे तुम लाख बार उसके सम्बन्ध में सोचो लेकिन तेरा यह प्रयाश सफल नहीं होगा
J . Krishnamurti कहते हैं ------
"Truth is pathless journey "
Lao Tzu कहते हैं -----
" सत्य ब्यक्त करनें पर असत्य बन जाता है "
फिर क्या करें ?
गीता , नानक , कबीर , रामकृष्ण परमहंस सभीं एक बात कहते हैं ----खूब तैरो इस भोग संसार में लेकिन ऐसे रहो जैसे पानी में कमल - पत्र रहता तो जरुर है लेकिन पानी उसे गीला नहीं कर पाता , तेरी स्थिति इस भोग सनार में कुछ इस प्रकार से रहनी चाहिए -----
संसार और संसार में ब्याप्त भोग का गुलाम बन कर न रहो उसका द्रष्टा बनो
तुम इस संसार के ऐसे अनुभव से गुजरो कि : ------
- भोग में भगवान दिखनें लगें
- काम में राम दिखनें लगें
- वासना प्यार बन जाए
और
यह माया निर्मित संसार प्रभु के विस्तार स्वरुप नज़र आनें लगे
==== राधे - राधे =====
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