परम गति प्राप्त करनें का गीता ध्यान

गीता श्लोक  8.12 - 8.13

यहाँ इन दो सूत्रों के माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं :--------

[क] सभीं द्वारों पर पूर्ण नियंत्रण हो ......
[ख] मन ह्रदय में स्थित हो .......
[ग] प्राण मस्तक स्थापित करके .....
[घ] ॐ को ऐसे गुनगुनाएं कि .....
      * देह के पोर - पोर में ओम् की धुन गूजनें  लगे
      * इस ओम् की धुन में ------
          एक अब्यय , अप्रमेय , सनातन , अचिंत्य ब्रह्म की अनुभूति होनें लगे
तब -----
इस स्थिति में जो प्राण को शरीर छोड़ कर जाते हुए का ......
द्रष्टा बना हुआ होता है .....
वह 
परम गति का राही  होता है
अगले अंक में इस ध्यान को और स्पष्ट किया जाएगा 
==== ॐ =====

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