गीता अध्याय - 13 भाग - 01
गीता अध्याय - 13 में कुल 34 श्लोक हैं और इन श्लोकों के माश्यम से प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को निम्न बाते बता रहे हैं :
- क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ
- ज्ञान - ज्ञानी के लक्षण
- क्षेत्र की रचना
- निराकार ब्रह्म
- प्रकृति
- कार्य - करण
- पुरुष
- ध्यान , सांख्य , कर्म से ब्रह्म की अनुभूति
- क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का योग = जीव [ प्राणी का निर्माण ]
- निर्गुण आत्मा
- अब्यय परमात्मा
गीता बुद्धि - योग का आदि गुरु है जिसकी ऊर्जा क्षेत्र में आया हुआ खोजी कभीं भी इसकी ऊर्जा क्षेत्र से बहार नहीं निकल सकता / निर्गुण , निराकार अचिंत्य , असोच्य , अब्यक्त आत्मा , ब्रह्म , पुरुष , परमेश्वर सभीं जीव के ह्रदय में स्थित हैं लेकिन जीवों में बुद्धि जीवी मनुष्य इस सम्बन्ध में अबोध बन कर रहता है /
आत्मा , जीवात्मा , परमेश्वर , ब्रह्म , पुरुष क्या ये सब अलग - अलग हैं ?
मनुष्य के दृदय में ये सभी हैं
- मनुष्य के ह्रदय में ईश्वर है
- मनुष्य के ह्रदय में महेश्वर है
- मनुष्य के ह्रदय से सभी भाव निकलते हैं
- मनुष्य के ह्रदय में प्यार धडकता है
यह बातें मैं नहीं गीत में श्रो प्रभु कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं /
साधना जब पकती है तब जो कुछ शब्द आधारित हैं सब शब्दातीत हो जाते हैं और ----
जो हैं वे सभीं एक ऊर्जा से उसी ऊर्जा में दिखनें लगते हैं जिसको अलग अलग ऋषि अलग- अलग शब्दों के मध्यम से ब्यक्त करनें की कोशिश किये हैं /
गीता में .....
भक्ति ---
सांख्य ---
योग ----
वैशेषिका ---
न्याय -----
मीमांष-----
वेदान्त ---
आदि सभीं मार्गों के शब्दों का प्रयोग किया गया है और अंत में सबको एक से जोड़ा गया है जिसको अब्यक्त कहते हैं जो ---
अप्रमेय है , जो सनातन है , जो समयातीत है , जो स्थिर है , जो सर्वत्र है , जो निर्गुण है , जो द्रष्टा है और जो सबके होनें का श्रोत है /
कुछ और बाते अगले अंक में :----
=== ओम् ====
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