गीता एक परम रसायन है

लोग भाग रहे हैं , मनुष्य जबसे दो पैरों पर खडा हुआ है तब से भाग रहा है , संसार में जीवन का अंत आ जाता है , इस भाग का कोई अंत नहीं , देखनें में कुछ ऐसा दिखता है लेकिन एक आयाम ऐसा है जहाँ पहुंचनें पर भागनें का आकर्षण समाप्त सा हो जाता है लेकिन लोग उस से बच कर आगे निकल जाते हैं और इस आयाम का नाम है श्रीमद्भगवद्गीता /

आप क्या चाहते हैं , योग , ध्यान , भक्ति , न्याय , सांख्य , मिमांस , वैशेषिका या फिर वेदांत ? गीता में क्या नहीं है , आप लेनें वाले तो बनो / वैज्ञानिक कहते हैं , गीता भारत भूमि पर लगभग पांच हजार सालों से किसी न किसी रूप में उपलब्ध है लेकिन लोग इसे तब याद करते हैं जब सामनें मृत्यु एक काली छाया के रूप में धुधली - धुधली दिखनें लगती है / ऎसी मान्यता है कि जब प्राण निकल रहे हों तब गीता के दो - एक शब्द भी यदि कानों के माध्यम से ह्रदय में उतर जाएँ तो वह ब्यक्ति सीधे परम गति को प्राप्त करता है लेकिन कान के माध्यम से ह्रदय में उतरनें की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं जितना आसान हम हिंदू लोग समझते हैं /

गीता सुननें में जितना सरल है , अभ्यास की दृष्टि से उतना ही जटिल भी है / गीता कहता है जो कर रहे हो उसे करते रहो कोई हर्ज नहीं लेकिन इतनी सी बात अपनी जेहन में रखना कि जो कर रहे हो वही तुमको मिलेगा ; जैसा बोओगे वैसा काटोगे / गीता की यात्रा तलवार की धार पर चलनें वाली यात्रा है जहाँ हर पल होश बनाए रखना अति आवश्यक होता है वरना गीता से जुडनें से कोई फ़ायदा नहीं / गीता कहता है -----

कर्म करो लेकिनआसक्ति उस कर्म के होनें के पीछे न हो , अब आप गीता की इस बात को देखो और समझो कि यह कैसे संभव हो सकता है ? अगले अंक में गीता की कुछ और बातों को देखा जाएगा /

======ओम्=======


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