प्रभु श्री कृष्ण आत्मा को क्या समझते हैं

पिछले अंक में ईश्वर एवं श्री कृष्ण के सम्बन्ध में गीता के श्लोक 18.61 , 18,62 एवं 18.66 को हमनें देखा जहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं … ....

[]अर्जुन!तूं उस परमेश्वर की शरण में जा जो सबके ह्रदय में स्थित है और सबको उनके कर्मों के अनुसार अपनी माया के प्रभाव से घुमा रहा है[श्लोक –18.61 , 18.62 ]

[]हे अर्जुन!तूं पूर्णरूप से सभीं धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आजा[मामेकं शरणं ब्रज] ,मैं तुमको सभीं पापों से मुक्त कर दूंगा[अहम् त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः]

अब देखते हैं आगे … ...

गीता श्लोक –10.20

अहमात्मा गुणाकेश सर्वभूताशयस्थित:

हे अर्जुन ! मैं सभीं जीवों के ह्रदय में आत्मा के नाम से स्थित हूँ /

गीता श्लोक –13.22

उपद्रष्टा अनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः

परमात्मा इति च अपि उक्तः देहे अस्मिन् पुरुषः परः

इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है वही शाक्षी होनें से उपद्रष्ट और यथार्थ सम्मति देनेंवाला होनें से अनुमन्ता , सबका धारण – पोषण करनें वाला होनें से भर्ता , जीव रूपेण भोक्ता , ब्रह्मा आदि का भी स्वामी होनें से महेश्वर एवं शुद्ध सच्चिदानंद होनें से परमात्मा भी कहा जाता है /

आप यहाँ प्रभु श्री कृष्ण के गीता में दो श्लोक देख रहे हैं जहाँ प्रभु कह रहे हैं … ..

सबके दृदय में बैठा मैं ही आत्मा हूँ / आत्मा महेश्वर एवं परमेश्वर नाम दे भी देखा जता है और यह देह में द्रष्टा रूप से होते हुए भी देह से हो रहे सभीं कृयाओं के ऊर्जा श्रोत के रूप में भी है / आत्मा के सम्बन्ध में दो विचार देखनें को मिलाते हैं ; एक दल के लोग आत्मा को पूर्ण रूप से द्रष्टा समझते हैं और दूसरे लोग आत्मा को भोक्ता रूप में भी देखते हैं / गीता में कहीं आत्मा को मात्र द्रष्टा रूप में ब्यक किया गया है तो कहीं इसे इंद्रियों के माध्यम से भोक्ता भी दिखाया गया है / एक सीधी सी बात है ; आप जितनें लोगों की बातों को बुद्धि स्तर से पकड़ना चाहेंगे गीता आप से उतना ही दूर होता जाएगा , आप गीता को किसी और की बातों से न समझें , आप स्वयं इसे प्रभु का प्रसाद समझ कर स्वीकारें और इसके श्लोकों की धुन से अपनें मन – बुद्धि की ऊर्जा को निर्विकार बनाते रहे / आत्मा एक रहस्य है और रहेगा , आत्मा वह उर्जा है जिसको प्राण कहते हैं और जब यह देह को त्यागता है तब भोगी पुरुष को बहुत दर्द होता है और योगी इसके त्याग की प्रक्रिया का द्रष्टा बना रहता है /

अगले अंक में हम कुछ और श्लोकों को देखेंग //

====ओम्========


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