गीता एक परम राह है

गीता में साकार प्रभु श्री कृष्ण का तन है , मन है , बुद्धि है और चेतना है और इनके माध्यम से वह जो गीता से अपनें को जोड़ रखा है , निराकार प्रभु श्री कृष्ण के आयाम में पहुंचनें वाला ही होता

है /

क्या है निराकार प्रभु श्री कृष्ण?

जैसे सभीं नदियों का आखिरी ठिकाना सागर होता है वैसे सभीं मनुष्य का आखिरी ठिकाना निराकार प्रभु अर्थात श्री कृष्ण होते हैं / भगवान राम को आंशिक अवतार माना गया है और प्रभु श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार के रूप में मनीषी लोग अभीं तक देखते रहे हैं / ऎसी कौन सी बात है कि लोग प्रभु श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार के रूप में देखते हैं ? प्रभु श्री कृष्ण कभीं हमारे सामनें एक सांख्य – योगी के रूप में आते हैं , कभीं भक्तो के सागर प्रेम - सागर के रूप में दिखते हैं , कभीं चक्र धारण किये हुए महाकाल के रूप में दिखते हैं , कभीं ममता के साकार रूप में बाल कन्हैया के रूप में दिखते हैं और कभी नटखट माखन चोर के रूप में हम सब के ह्रदय में स्थित निराकार कृष्ण को साकार रूप में दिखाते हैं , आखिर कहाँ जाओगे भाग कर जहाँ जिस मन दशा में तुम जाओगे प्रभु श्री कृष्ण तुमको उसी भाव में दिखेंगे और उनके अनेक भावों में दिखनें के पीछे एक कारण है :------------------

मनुष्य अपनें मन – बुद्धि,बिषय एवं दस इंद्रियों के गुलाम के रूप में एक होते हुए भी अनेक में विभक्त सा दिखता है;अभीं जो वह है वह अगले पल नहीं रह जाता,कुछ और हो जाता है/मनुष्य को कभी बिषय खीचते हैं,कभी इन्द्रियाँ खीचती है,कभीं मन – बुद्धि खीचते हैं और इन सब खिचाओं में अहँकार की ऊर्जा भी होती है चाहे वह उर्ज धनात्मक हो नकारात्मक हो/

मन में उठ रही तरंगे जब शांत हो जाती हैं , प्राण – अपान वायु जब सम हो जाती है तब यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक के फैलाव स्वरुप दिखनें लगता है और अनेक में उलझा मन शांत हो कर एक पर टिक जाता है और उस एक की अनुभूति तो संभव है लेकिन वह एक है -----

अज्ञेय

अविज्ञेय

और

अब्यक्तातीत

==== ओम्=====


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