जीवन समीकरण
आत्मा , ह्रदय एवं प्रभु श्री कृष्ण के सम्बन्ध को हम एक साथ गीता दृष्टि से देख रहे है और इस सम्बन्ध में गीता के दो और श्लोकों को हम देखनें जा रहे हैं जो इस प्रकार हैं ------
गीता श्लोक –15.7
मम एव अंशः जीवलोके जीव भूतः सनातनः /
मनः षष्ठानि इन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानी कर्षति //
भावार्थ
इस देह में सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही प्रकृति में स्थित मन सहित पांच ज्ञानेन्द्रियों को आकर्षण करता है /
गीता श्लोक –15.11
यतंतः योगिनः च एनं पश्यन्ति आत्मनि अवस्थितम् /
यतंतः अपि अकृत आत्मानः न एनं पश्यन्ति अचेतसः //
भावार्थ
यत्नशील योगीजन अपने ह्रदय में स्थित आत्मा को तत्त्व से जानते हैं लेकिन अचेत ब्यक्ति ; अज्ञानी इस आत्मा को यत्न करनें पर भी नही समझ पाता /
जो लोग गीता श्लोक – 15.7 को पढेंगे उनके लिए आत्मा प्रभु का अंश है और जिसका स्थान जीवों का ह्रदय है और जो लोग गीता श्लोक – 10.20 को पढेंगे उनके लिए आत्मा रूप में प्रभु श्री कृष्ण सभीं जीवों के ह्रदय में स्थित हैं / आत्मा , परमात्मा एवं ह्रदय का गहरा सम्बन्ध है और आत्मा उस ऊर्जा का श्रोत है जो जीवों को जीवित रख रखा है और वही सबके कर्म – ऊर्जा का भी श्रोत है / पांच ज्ञानेन्द्रियाँ प्रकृति में स्थित अपनें - अपनें बिषयों को तलाशते रहते हैं और जब किसी इंद्रिय को उसका बिषय मिल जाता है तब वह इंद्रिय उस बिषय के सम्बन्ध में मन को सूचना देती है और मन प्रकृति जनित तीन गुणों का गुलाम होता है / ज्ञानेन्द्रिय से राप्त सूचना को मन उस गुण के आधार पर देखता है जो गुण उस समय उसे ऊपर प्रभावी होता है /
बिषय , गुण , इन्द्रियाँ , मन , ह्रदय , आत्मा एवं परमात्मा का एक समीकरण है और वह समीकरण मनुष्य को स्वर्ग – नर्क की यात्रा तो कराता ही है , मनुष्य दुबारा जन्म भी इसी समीकरण के आधार पर प्राप्त करता है तथा यही समीकरण परम गति को भी प्राप्त करवाता है / मनुष्य के जीवन समीकरण का होश परम गति में पहुंचाता है और समीकरण की आसक्ति नरक में / मनुष्य का जीवन समीकरण जब गुणातीत स्थिति में होता है तब वह ब्यक्ति परम गति के मार्ग पर होता है और जब यह समीकरण तीन गुणों की ऊर्जा से होता है तब यही समीकरण नरक का द्वार बन जाता है //
=====ओम्=====
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