गीता एक परम बसेरा है

गीता पढते हो उत्तम है
गीता पर सोचते हो , वह भी उत्तम है
लेकिन …...
यदि तुम्हारी सोच गुण तत्त्वों पर आधारित है तो तुम … .....
गीता के माध्यम से स्वयं को धोखा दे रहे हो //
गीता महाभारत का अंग है , गीता सांख्य - योग का सार है और गीता वेदान्त है , ऎसी अनेक बातें आप गीता सम्बंधित साहित्य में देखते हैं लेकिन इन बातों से से न तो बुद्धि तृप्त होती हैं और न ही कोई स्वप्रकाशित मार्ग ही दिखता है जिस पर हम चल कर अपनें अज्ञेय लक्ष्य पर पहुँच सकें /
क्या है यह हमारा अज्ञेय लक्ष्य?और क्या है यह स्वप्रकाशित मार्ग/
अज्ञेय लक्ष्य है प्रभु मय जीते हुए प्रभु में प्रवेश पाना , वह भी द्रष्टा की स्थिति में और स्वप्रकाशित मार्ग वह मार्ग है जिसकी यात्रा के दौडान मन – बुद्धि में मात्र एक तत्त्व बना रहता है और दूसरे तत्त्व के प्रवेश की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती / स्वप्रकाशित मार्ग है उस यात्रा - पथ का नाम जिस पर चलनें वाला न हाँ समझता है न नां , न अच्छा को समझता है न बुरे को , न अपना - पराया को समझाता है तथा न सुख को समझता है और न दुःख को , वह तो मात्र एक द्रष्टा के स्पेस में रहता है जहाँ द्वैत्य भावों की कोई जगह नहीं , जहाँ द्वन्द शब्द का कोई अस्तित्व नहीं और जहाँ ऐसा स्पेस है वहाँ रहनें वाला प्रभु खोजी नही होता , वह गीता योगी जहाँ भी रहता है वहाँ प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा निर्मल गंगा धारा की तरह बहती रहती है /
गीता के सूत्र गीता के प्रवेश द्वार हैं और जो द्वार में ही उलझ कर रह गया वह चूक गया और जो प्रवेश कर गया वह वहीं गीता में बस गया /
आप क्या चाहते हैं? -----
गीता द्वार की बनावट , सजावट एवं डिजाइन को ही देखते रहना चाहते हैं … ..
या फिर … .
गीता में बसेरा बनाना चाहते हैं?
==== ओम् =====

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