श्री कृष्ण एवं ईश्वर
गीता श्लोक –18.61
ईश्वरः सर्भूतानाम् हृद्देशे अर्जुन तिष्ठति
भ्रामयन् सर्वभूतानि यंत्रारुढानि मायया
हे अर्जुन!शरीर एक यांर की भांति है और इस यन्त्र में आरूढ़ हुए ईश्वरसब के ह्रदय में बैठा,अपनी माया से सभीं के कर्मों के अनुकूल भ्रमण करा रहा है-----
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गीता श्लोक –18.62
तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत
तत् प्रसादात् पराम् शांतिम् स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतं
हे भारत!तुम उनकी शरण में जा तुमको उनके प्रसाद स्वरुप परम शाश्वत शांति मिलेगी और तुम परम धाम को प्राप्त होगा/
अब देखिये गीता श्लोक – 18.66
सर्वधर्मान् परित्यज्य मां एकं शरणम् व्रज
अहम् त्वा सर्व पापेभ्य:मोक्षयामि मा शुचः
यहाँ प्रभु कह रहे हैं … .....
सभीं धर्मों को त्याग कर तुम मात्र मेरी शरण में आजा,मैं तुमको सभी पापों से मुक्त कर दूंगा तुम चिता न कर//
प्रभु श्री कृष्ण पहले दो सूत्रों में कह रहे हैं अर्जुन को कि तुम उस ईश्वर की शरण में जा जो सबके ह्रदय में स्थित है और तुम उसके प्रसाद रूप में परम धाम की प्राप्ती करेगा और यहाँ आकिरी श्लोक में कह रहे हैं,हे अर्जुन तुम मात्र मेरी शरण में आजा मैं तेरे को सभीं पापों से मुक्त कर दूंगा,अब अप सोचो की क्या ईश्वर और श्री कृष्ण दो हैं या फिर-------
अगले अंक में इस सन्दर्भ में कुछ और बातों को देखेंगे
=====ओम्======
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