गीता मूल तत्त्व आत्मा क्रमशः

गीता के मूल तत्त्व

यहाँ हम गीता के मूल तत्त्वों में आत्मा रहस्य को गीता के आधार पर समझनें की कोशिश कर रहे हैं और अज हम गीता के दो नीं सूत्रों को देखनें जा रहे हैं /

गीता सूत्र –2.19

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्/

उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते//

गीता सूत्र –2.20

न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायंभूत्वाभवितावान भूयः/

अजो नित्यः शाश्वतं अयं पुराणःन हन्यते हन्यमाने शरीरे//

न मार ता है न मरता है [ does not slay , and is not slain ]

न जन्म लेता है , न मरता है , सबसे प्राचीन है जो , जो शरीर समाप्ति पर भी नहीं मारा जाता

[ never born never die , unborn , eternal , permanent , primeval , which is not slain when the body is slain . ]

गीत के उप दिए गए दो सूत्र कह रहे हैं -------

आत्मा वह है जो देह में ऊर्जा का श्रोत है , जो अजन्मा है , शाश्वत है , सर्वत्र है , जो अपरिवर्तनीय है जो समयातीत है , जो न तो मारता है और न ही मरता है / आत्मा प्राचीनतम है अर्थात टाइम – स्पेस आत्मा से आत्मा में है जो समयातीत है औरजो स्पेस रहित स्पेस है /

आत्मा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का माध्यम है जो सीमा रहित है जो प्रभु से प्रभु में है जो तीन गुण जनित विकारों को ऊर्जा देता है लेकिन विकार रहित है औरजो जीव के देह में ह्रदय द्वारा ध्यान के माध्यम से समझा जाता है / आत्मा की समझ वह मन – बुद्धि करते हैं जिन पर तीन गुणों का प्रभाव नहीं रह जाता //


=====ओम्========


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