गीता के मूल तत्त्व आत्मा भाग दो

गीता के मूल तत्त्वों में हम यहाँ आत्मा से सम्बंधित प्रभु श्री कृष्ण के श्लोकों को देख रह रहे हैं , तो आइये देखते हैं गीता का एक श्लोक -------

श्लोक – 14.5

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवा : /

निबधन् अन्ति महाबाहो देहे देहिनं अब्ययम् //

अब्यय आत्मा को देह में प्रकृति रचित तीन गुण [ सात्त्विक, राजस एवं तामस ] रोक्क कर रखते हैं "

यहाँ प्रभु के इस सूत्र में दो बातों को साधना की दृष्टि से हमें देखना चाहिए /

[ ] अब्यय शब्द आत्मा के लिए प्रयोग किया गया है , इस बात को समझाना है

[ ] तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं , इस बात को भी हमें देखना है

[ ] अब्यय शब्द का क्या भाव है ?

ब्यय शब्द उसका संबोधन है जिस से यदि कुछ ले लिया जाए तो उसकी मात्रा कम हो जाती हो और यदि उसमें कुछ मिला दिया जाए तो उसकी मात्रा बढ़ जाती हो / अब्यय शब्द को ब्यय शब्द के साथ समझना चाहिए / अब्यय का अर्थ है वह जिसकी मात्रा को न तो कम किया जा सके और न ही बढ़ाया जा सके अर्थात अब्यय वह है जो स्थिर रहता हो , क्या विज्ञान में कोई ऎसी सूचना है जिसको अब्यय नाम से संबोधित किया जा सके ?

[ ] तीन गुण , देह एवं आत्मा सम्बन्ध

गीता में प्रभु कह रहे हैं ------

आत्मा को देह में रोक कर प्रकृति जन्य तीन गुण रखते हैं / अब आप सोचना , क्या गुणातीत योगी की आत्म उसके देह में आजाद रहता है और आजाद आत्मा का स्वभाव क्या होता होगा ? झेंन फकीर कहते हैं - बॉस की पोपली जैसे बन जाओ अर्थात बॉस के पाइप जैसा जिसमें आगे से झांको या पीछे से झांको कहीं कोई रुकावट नहीं दिखती , क्या इस स्थिति को गीत में प्रभु श्री कृष्ण सूत्र 14.5 के माध्यम से ब्यक्त करना चाह रहे हैं ? गीता अध्याय – 14 गुणों के सम्बन्ध में है और प्रभु अर्जुन को यहाँ गुणातीत योगी बनाना चाह रहे हैं जबकी अध्याय – 2 में स्थिर प्रज्ञ योगी की पहचान को बताते हैं /

वह योगी जो स्थिर प्रज्ञ है या गुणातीत है उसकी आत्मा प्रत्यग आत्मा होता है ; पतांजलि आत्मा को दो तरह से देखते हैं , एक गुण प्रभावित आत्मा होता है जिसको परागात्मा कहते हैं एव गुणातीत आत्मा को प्रत्यागात्मा कहते हैं / साधाना का उद्देश्य है आत्मा को परागात्मा से प्रत्यागात्मा में बदलना / इतनी बात को ध्यान में रखना - आज हम उस बिषय को छू रहे हैं जिसके सम्बन्ध में हमारी इंद्रियों को कोई अनुभव नहीं है और यह बात इंद्रिय – मन स्तर से परे की है अतः इसे समझना है अति कठिन [ Today we are touching that One whose perception we do not have and this experiencing beyond the perception would always be very difficult . ]





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