गीता के श्री कृष्ण

गीता के मूल तत्त्व भाग – 02

पुरुष परमात्मा एवं ब्रह्म भाग –2

आइये इस सन्दर्भ में गीता के कुछ और श्लोकों को देखते हैं -------

श्लोक –13.17

बिभिन्न जीवों में वह बिभाजित सा दिखता है लेकिन वह है एक [ omnipresence ]

श्लोक –15.17

जीव लोक में सभीं जीव मेरे ही अंश हैं

श्लोक –7.6

जगत के होनें न होनें का कारण मैं हूँ

श्लोक –7.10

सभीं जीवों का आदि बीज मैं हूँ

श्लोक – 7.11

धर्माविरुद्धो भूतेषु कामः अस्मि [ धर्म अनुकूल काम , मैं हूँ ]

श्लोक – 10.28

प्रजनन : च अस्मि कन्दर्पः

[ प्रजनन की उर्जा काम का देव कामदेव मैं हूँ ]

श्लोक – 9.10

सभीं चर – अचरों की रचना कर्ता , प्रकृति का जन्मदाता एवं जनक बीज मैं हूँ

श्लोक – 10.30

काल मैं हूँ

श्लोक –7.24

निराकार जब साकार रूप धारण करता है तब वह संदेह के घेरे में रहता है

श्लोक –9.4

सम्पूर्ण जगत मेरे अब्यक्त रूप से ब्यक्त है

आज प्रातः कालीन बेला में सूर्य उदय होनें से ठीक पूर्व जहां न रात है न दिन और जिसे साधक संध्या संज्ञा के परिभाषित करते हैं,मैं आप को गीता के दस सूत्रों को दे रहा हूँ/गीता के इन सूत्रों को प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन के विभिन्न प्रश्नों के सन्दर्भ में उनके संदेह को दूर करनें के लिए धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के मध्य उस समय बोला है जिस समय संसार के पहले विश्व – युद्ध के बादल घनें हो रहे थे/

====ओम्=======



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