आत्मा को कैसे समझें

आत्मा

गीता के दो सूत्र 2.17 एवं 2.18 आत्मा के सम्बन्ध में कहते हैं -----

आत्मा वह है जो …....

अब्यय है[ immutable ]

अविनाशी है[ indestructible ]

सर्वत्र है[ pervades everywhere ]

अप्रमेय है[ incomprehensible ]

गीता अध्याय दो में प्रभु अपनें तेरह सूत्रों में आत्मा को स्पष्ट करते हैं और यह भी कहते है की आत्मा अचिंत्य है / वह बिषय जो अचिंत्य हो उसे ब्यक्त कैसे किया जा सकता है ? यह बात अप सोचें क्योंकि यह मेरी बुद्धि से परे का बिषय है /

क्या विज्ञान में कोई सूचना ऎसी है

जो-----

अचिंत्य हो

अब्यय हो

सर्वत्र हो

जो अप्रमेय हो ?


====ओम्=====


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