Posts

प्रज्ञा समीकरण

गीता सूत्र – 2.67 इन्द्रियाणां हि चरतां यत् मन : अनुविधीयते तदस्य हरति प्रज्ञां वायु : नावं इव अम्भसि जैसे पानी में चल रही नाव को वायु हर लेती है वैसे बिषयों से सम्मोहित इन्द्रिय के बश में हुआ मन प्रज्ञा को हर लेता है Mind attracted by the roving senses keeps controls over pure intelligence . प्रज्ञा क्या है ? इन्द्रियाँ , मन , बुद्धि . प्रज्ञा , आत्मा - इन शब्दों का आपस में गहरा सम्बन्ध है प्रज्ञा आत्मा की ऊर्जा को सबसे पहले प्राप्त करती है , यह आत्मा के अति समीप है जिस पर सम्मोहित मन का प्रभाव तो रहता है लेकिन सम्मोहित इन्द्रियों का सीधा कोई प्रभाव नहीं होता प्रज्ञा के लिए कोई अंग्रेजी में शब्द नहीं है गीता तत्त्व विज्ञान कि गणित को देखिये ------- बिषय इन्द्रियों को सम्मोहित करते हैं … .......... इन्द्रियाँ मन को सम्मोहित करती हैं … ............ मन प्रज्ञा को सम्मोहित करता है … ................. लेकिन प्रज्ञा के साथ स्थित आत्मा पर कोई किसी का असर नहीं होता ===== ओम =========

इन्द्रिय ध्यान

गीता सूत्र – 2.60 यतत : हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्रित : इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन : || आसक्ति की ऊर्जा वाली इन्द्रियाँ मन को गुलाम बना कर रखती हैं | Impetuous senses keep mind in their control . गीता यहाँ क्या बताना चाह रहा है ? आसक्ति कि ऊर्जा क्या है और कहाँ से आती है ? इन्द्रियों का स्वभाव है अपने - अपनें बिषयों में विहरना और बिषयों में राग द्वेष होते हैं जो इन्द्रियों को सम्मोहित करते हैं | बिषयों से सम्मोहित इन्द्रिय मन को भी अपनें पक्ष में रखती है | जब मन सम्मोहित होजाता हा तब उन मन के साथ रहनें वाली बुद्धि भ्रमित हो जाती है और हर बात पर संदेह होनें लगता है | भ्रमित मन – बुद्धि में अज्ञान होता है जो असत को सत् और सत् को असत सा दिखाता है | राजस और तामस गुणों की छाया जबतक मन – बुद्धि पर है तबतक उस मन – बुद्धि में अज्ञान ही रहता है | ====== ओम =====

गीता सूत्र - 3.37

गीता सूत्र – 3.37 काम : एष : क्रोध : एष : रजोगुण समुद्भव : क्रोध काम का रूपांतरण है दोनों राजस गुण से हैं Anger is a form of the sex – energy .. Both are from the natural mode – passionate .. प्रभु की बानी क्या है ? यदि यह मांन लिया जाए की गीता के सारे श्लोक किसी के द्वारा बोले गए एवं किसी और के द्वारा लिपीबद्ध किये गए हैं तो प्रश्न उठता है की … ....... क्या गीता में कोई भी ऐसा सूत्र नहीं जो प्रभु श्री कृष्ण द्वारा बोला गया हो ? आखिर प्रभु की बानी किसी होती होगी ? प्रभु की बानी सुननें के बाद कोई प्रश्न बुद्धि में नहीं उठता , यह है - परम बानी की पहचान ; परम बानी में वह ऊर्जा होती है जो मनुष्य के अंदर पहुँच कर तन , मन एवं बुद्धि में बह रही ऊर्जा को निर्विकार कर देती है और निर्विकार ऊर्जा में ज्ञान की किरणें होती हैं जो अज्ञान को समाप्त कर देती हैं आप ऊपर गीता का एक सूत्र देखा , क्या आप के मन में कोई संदेह इस सूत्र के प्रति उठ रहा है ? आप गीता के सूत्रों को शांत मन से श्रवन जब करेंगे तब आप को यह धीरे - धीरे अनुभव होनें लगेगा की गीता उस का नाम है -------- जिसमें वह ऊर्जा

गीता सूत्र - 8.3 में कर्म की परिभाषा को कैसे समझें ?

भूत भाव उद्भव कर : विसर्ग : इति कर्म : गीता - 8.3 K arma is the name given to the creative force that brings into existence . This is the explaination given by Dr. Radhakrishanan . K arma infact is the creative impulse out of which life,s forms issue . T he whole cosmic evolution is called karma . गीता के इस श्लोक को समझनें के लिए आप को गीता के कुछ सूत्रों को समझना पड़ेगा जो आगे दिए जा रहे हैं । गीता - 2.62 - 2.63 मन में हो रहे मनन से आसक्ति बनाती है ----- आसक्ति कामना पैदा करती है ----- कामना राजस गुण के तत्त्व की ऊर्जा से है जिसका मूल है - काम ऊर्जा । काम - कामना दो नहीं एक ही हैं , कामना टूटनें का संदेह क्रोध उत्पन्न करता है .... क्रोध में ज्ञान अज्ञान से ढक जाता है और ..... अज्ञान में पाप कर्म होनें की ऊर्जा होती है ॥ गीता - 3.19 - 3.20 आसक्ति रहित कर्म प्रभु की अनुभूति कराता है ॥ गीता - 5.10 आसक्ति रहित कर्म करनें वाला भोग में कमल के पत्ते की भाँती रहता है उसे भोग की हवा तक नहीं छू पाती ॥ गीता के पांच सूत्र आप को ऊपर दिखाए गए , ये सूत्र उस ज्ञान - मार्ग के एक अंश मात्र हैं जि

Gita param shanti sutra

गीता परम शांति सूत्र यहाँ इस श्रृंखला में हम गीता के 116 उन परम सूत्रों को देख रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध कर्म - योग से है । आप यदि चाहें तो इन सूत्रों को एक जगह एकत्रित करके अपनें लिए गीता ध्यान माला तैयार कर सकते हैं । आइये अब उतरते हैं अगले सूत्रों में ---------- ध्यायत : विषयां पुंस : संग : तेषु उपजायते । संगात सज्जायते काम : काम : कामात क्रोध : अभिजायते ॥ गीता 2.62 क्रोधात भवति सम्मोह : सम्मोहात स्मृति विभ्रम : स्मृति - भ्रंशात बुद्धि - नाश : बुद्धि - नाशात प्रणश्यति ॥ गीता 2.63 गीता के इन दो सूत्रों को देखिये जो कर्म योग की बुनियाद को दिखा रहे हैं ---------- बिषय के ऊपर जो मनन करता है ......... उसके मन में आसक्ति उपजती है । आसक्ति काम ऊर्जा का तत्त्व है जो कामना उत्पन्न करती है ....... कामना में पड़ी रुकावट ...... क्रोध की जननी है । क्रोध में सम्मोहन होता है ..... जो बुद्धि को सम्मोहित करके अज्ञान से ज्ञान को ढक देता है ॥ इस बात से अधिक स्पष्ट बात आप को और कहाँ मिलेगी ? आप गीता से क्यों दूर - दूर रह रहे हैं ? ------------------------------------------------ एक बात जो बातों की बा

गीता दृष्टि

इन्द्रिय - बिषय से सम्बंधित छ : बातें आँख , कान , नाक , जिह्वा और त्वचा के माध्यम से ------ द्रश्य , रूप - रंग , ध्वनि , गंध , स्वाद और संवेदना के माध्यम से हम प्रकृति से जुड़े हुए हैं ॥ बिषय अपनें अन्दर राग - द्वेष की ऊर्जा रखते हैं और हम उनसे आकर्षित होते रहते हैं ॥ राग - भय और क्रोध रहित ब्यक्ति प्रभु में होता है ॥ राग , भय एवं क्रोध रहित ब्यक्ति ज्ञानी होता है ॥ इन्द्रिय सुख लगता तो भला है पर उसका परिणाम दुःख में होता है ॥ इन्द्रिय , मन और बुद्धि में जिस गुण की ऊर्जा होती है मनुष्य का वैसा स्वभाव होता है और वैसा वह सोचता एवं करता है ॥ ===== ॐ ======

गीता किरण

बिषय इन्द्रिय संयोगात यत तत् अग्रे अमृत - उपमं परिणामे बिषम इव तत् सुखं राजसं स्मृतं गीता - 18.38 इन्द्रिय - बिषय सहयोग से जो सुख मिलता है वह प्रारम्भ में अमृत सा लगता है लेकिन उसका परिणाम बिष के समान होता है और ऐसे सुख को ........ राजस सुख कहते हैं ॥ Pleasure perceived by senses through their objects is passionate pleasure । Passionate pleasure appears as nector in the beginning but its result always lies in poison । LET US SEE ...... What is our perception about the pleasure we get through our senses and what is the definition of this pleasure in Gita ? गीता यह नहीं कहता की यह न करो । गीता कहता है ----- जो कर रहे हो उसे समझो ॥ गीता कहता है ---- जो कर रहे हो वह क्या है ? गीता कहता है ----- जो कर रहे हो वह तुमको कहाँ ले जा सकता है ? गीता आप का परम मित्र है , इस बात को आप को - हमें समझना है ॥ ===== ओम ======