पराभक्ति एक माध्यम है
गीता में परा भक्ति क्या है ?
According to Gita what is steadfast devotion ?
गीता में परा भक्ति एवं परा भक्त को ठीक से समझनें के लिए अप निम्न सूत्रों को देख सकते हैं :--10.7 , 6.15, 6.19 ,8.8 ,12.6, 12.7, 18.54 -18.55 ,6.30 ,13.29 ,15.18 -15.19 ,14.26 ,18.68
आगे चल कर गीता के इन सूत्रों को अलग – अलग से देखा जाएगा अभीं इन सभी सूत्रों के भाव को समझते हैं[ We shall be going through all these sutras later on but here we are going to touch the essence of these sutras ]
गीता में गीता के शब्दों के भाव को खोजना गीता की साधना बन जाता है और गीता के शब्दों का परम्परागत अर्थ लगा कर बैठ जाना ऐसे हैं जैसे किसी मुर्दा के ऊपर गीता - पुस्तक को रख देना / इतनी बात याद रखना , गीता आप की आत्मा को दिशा देता है , आत्मा में जो उर्जा है उसे गीता दिखाता है और ऐसे पवित्र आयाम को जब हम अपना गुलाम बना लेना चाहते तब यह आयाम हमारा गुलाम तो नहीं बन पाता पर हमसे काफी दूर जरुर हो जाता है / परा - अपरा , निराकार – साकार , निश्चयात्मक – अनिश्चयात्मक , अविकल्प – सविकल्प , स्वर्ग – नर्क और परम धाम ऐसे कुछ शब्द हैं जिनकी समझ ही गीता है / गीता में इन शब्दों को जो समझता है वह – आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार से अछूता रहता है और ऐसा ब्यक्ति ही स्थिर – प्रज्ञ एवं गुणातीत योगी , समभाव – योगी , संन्यासी कहलाता है / ऐसे गीता - योगी वह होता है जिसमें उसके ह्रदय में जीवन का वह राह स्पष्ट होता है जिस राह को प्रभु श्री कृष्ण गीता में बताते हैं /
वह आयाम परा - निर्विकल्प का आयाम होता है
जहां -------
मनुष्य संसार से बधा हुआ नहीं रहता
मनुष्य की पीठ भोग की तरफ होती है
मनुष्य की आँखें परम पर टिकी होती हैं
मनुष्य कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखता रहता है
मनुष्य को ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाएं एक से बनी दिखती रहती हैं
और
मनुष्य को सभीं सूचनाओं में वह दिखता रहता है
Para Bhakti is absolute awareness of the Supreme reality
where mind – intelligence network is free from attachement , desire , lust , anger , ego etc . The goodness energy flowing in the mind network keeps one in the state of steadfast devotion and this is only possible through Abhyas – Yoga .
=====ओम्====
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