मन ध्यान एवं देह

गीता सूत्र – 6.18

यदा विनियतं चित्तं आत्मनि एव अवतिष्ठते

नि : स्पृह : सर्व कामेभ्य : युक्तः इति उच्यते तदा


स्थिर चित्त वाला सभी प्रकार के भोगों की आसक्ति से दूर रहता है /

serenity of mind keeps away from the attachments


गीता सूत्र – 6.19

यथा दीपो निवात – स्थ : न इन्गते सा उपमा स्मृता

योगिनः यत – चित्तस्य युज्जतः योगं आत्मनः

योगारूढ़ स्थिति में मन ऐसे शांत रहता है जैसे वायु रहित स्थान में रखे दीपक की ज्योति स्थिर रहती है //

as a lamp in a windless place flickers not , to such is likened the yogi of subdued thought who practises union with the Self .


गीता सूत्र – 14.11

सर्वद्वारेषु देहे अस्मिन् प्रकाशः उपजायते

ज्ञानं यदा तदा विद्यात् विवृद्धम् सत्त्वं इति उत

सात्त्विक गुण की ऊर्जा देह के सभी नौ द्वारों को प्रकाशित कर देती है

the energy of goodness mode brings all the organs and senses of the body in awareness


गीता के तीन सूत्रों को एक साथ दिया गया और उनके भावों को भी दिखाया गया , गीता यहाँ कह रहा है , ध्यान से मन शांत होता है , मन की शांति से सात्त्विक गुण ऊपर उठता है और सात्त्विक गुण की ऊर्जा से मनुष्य अपनें देह एवं इंद्रियों के प्रति होश मय हो जाता है //

क्या इस से भी अधिक स्पष्ट बात , साधना के सम्बन्ध में कहीं और मिल सकती है ?


= ==== ओम् =======



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